इसे सुनेंरोकेंयूनाइटेड किंगडम और डेनमार्क ने छूट की बातचीत की, जबकि स्वीडन (जो मास्ट्रिच संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद 1995 में यूरोपीय संघ में शामिल हो गया) ने 2003 के जनमत संग्रह में यूरो को गिरा दिया, और यूरो को अपनाने के लिए यूरो को अपनाने के दायित्व को रोक दिया मौद्रिक और बजटीय आवश्यकताओं।
विदेशी बाजार की पहचान से क्या अर्थ है?
इसे सुनेंरोकेंविदेशी विनिमय (या फोरेक्स या एफएक्स) बाजार सबसे बड़ा बाजार है, जिसमें विदेशी व्यापारियों के बीच ट्रिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का आदान–प्रदान होता है। विदेशी मुद्राओं का व्यापार भारतीय बाजार सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्थानों में किया जाता है, और यह 24 घंटे खुला रहता है।
इसे सुनेंरोकेंव्यापारी हुंडी के अतिरिक्त एक और दूसरी तरह की हुंडियों का उपयोग किया जाता है जिन्हें ‘रोजगारी हुंडी’ कहते हैं। इसके अतिरिक्त यात्री हुंडी, सरकारी हुंडी और बैंकों द्वारा जारी की गई हुंडियों का उपयोग भी विदेशी व्यापारिक लेन देन चुकाने में होता है। उपर्युक्त लेन देन जिस दर पर चुकाया जाता है उसे विनिमय दर कहते हैं।
विदेशी करेंसी क्या है?
इसे सुनेंरोकेंविदेशी मुद्रा भण्डार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां हैं जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर वह अपनी देनदारियों का भुगतान कर सकता है। इस तरह की मुद्राएं केंद्रीय बैंक जारी करता है. साथ ही साथ सरकार और अन्य वित्तीय संस्थानों की तरफ से केंद्रीय बैंक के पास जमा किये गई राशि होती है.
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डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है?
एक डॉलर से पहले की तुलना विदेशी मुद्रा बाजार इतना तरल क्यों है में अब दूसरी मुद्राएं ज्यादा खरीदी जा सकती हैं. जापान के येन को ही लीजिये. एक साल पहले एक विदेशी मुद्रा बाजार इतना तरल क्यों है डॉलर के बदले 110 येन से थोड़ा कम मिलता था वह आज 143 येन मिल रहा है यानी 30 विदेशी मुद्रा बाजार इतना तरल क्यों है फीसदी से ज्यादा. अमेरिकी डॉलर की मजबूती का सबसे ज्यादा असर यहीं दिख रहा है.
विदेशी मुद्रा का भाव एक दूसरे की तुलना में लगातार बदलता रहता है क्योंकि बैंक, कारोबार और व्यापारी उन्हें पूरी दुनिया में टाइमजोन के हिसाब से खरीदते और बेचते रहते हैं. यूएस डॉलर इंडेक्स यूरो, येन और दूसरी प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कीमत आंकता है. यह सूचकांक इस साल 14 फीसदी से ज्यादा बड़ गया. निवेश के दूसरे माध्यमों की तुलना में यह ज्यादा आकर्षक दिख रहा है क्योंकि बाकियों के लिये तो यह साल अच्छा नहीं रहा. अमेरिकी शेयर बाजार 19 फीसदी नीचे है, बिटकॉइन ने अपनी आधी कीमत खो दी है और सोना 7 फीसदी नीचे गया है.
डॉलर मजबूत क्यों हो रहा है?
अमेरिकी अर्थव्यवस्था दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अच्छा प्रदर्शन कर रही है और यही डॉलर की मजबूती का कारण है. महंगाई की दर ऊंची है, रोजगार की स्थिति मजबूत है और सेवा क्षेत्र जैसे अर्थव्यवस्था के दूसरे सेक्टरों का भी हाल अच्छा है. इन सब ने विदेशी मुद्रा बाजार इतना तरल क्यों है धीमे पड़ते निर्माण क्षेत्र और कम ब्याज दर में अच्छा करने वाले सेक्टरों से उपजी चिंताएं दूर की हैं. इसके नतीजे में व्यापारी उम्मीद कर रहे हैं कि फेडरल रिजर्व ब्याज बढ़ाते रहने का अपना वादा निभाता रहेगा और कुछ समय के लिये यह व्यवस्था लागू रहेगी. इसके सहारे ऊंची महंगाई दर का सामना करने की तैयारी है जो 40 सालों में फिलहाल सबसे ऊंचे स्तर पर है.
इन सब उम्मीदों ने सरकार के 10 सालों के सरकारी प्रतिभूतियों के राजस्व में एक साल पहले के 1.33 फीसदी की तुलना में 3.44 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है.
सरकारी प्रतिभूतियों की चिंता किसे?
जो निवेशक अपने पैसे से ज्यादा कमाई करना चाहते हैं उनका ध्यान लुभावने अमेरिकी बॉन्ड की तरफ गया है. दुनिया भर के निवेशक उनकी ओर जा रहे हैं. फेडरल बैंक की तुलना में दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक इस समय निवेश आकर्षित करने में ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाओं का हाल अच्छा नहीं है. यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने अपने प्रमुख दर में अब तक की सबसे ज्यादा 0.75 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है. दूसरी तरफ फेडरल रिजर्व अपनी दर इस साल इसी मात्रा में दो बार बढ़ा चुका है और अगले हफ्ते इसे एक बार और बढ़ाने की उम्मीद की जा रही है. कुछ लोगों को तो उम्मीद है कि मंगलवार को महंगाई के बारे में जो रिपोर्ट आई है उसे देखने के बाद पूरे एक प्रतिशत की भी बढ़ोत्तरी हो सकती है.
यूरोप और दुनिया के दूसरे हिस्सों में 10 सालों के सरकारी प्रतिभूतियों पर अमेरिका की तुलना में कम राजस्व हासिल हुआ है. मसल जर्मनी में 1.75 फीसदी तो जापान में केवल 0.25 फीसदी.
स्वर्ण के सम्बंधित 1991 की अस्तव्यस्त विदेशी मुद्रा बाजार इतना तरल क्यों है विदेशी मुद्रा बाजार इतना तरल क्यों है अवस्था
जब भी 1991 के वित्तीय संकट की बात चलती है, तब लगभग सभी बातचीत की शुरुआत इस चर्चा के साथ होती है कि किस तरह तत्कालीन वित्त मंत्री, मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए विनियम बनाए थे. और यह ठीक भी है, क्योंकि उस समय माहौल पूरी तरह अस्तव्यस्त था. हो सकता है अस्तव्यस्तता शब्द ठीक नहीं हो, बल्कि गोपनीयता कहना सही होगा.
जब देश अपना भुगतान संतुलन हासिल करने में असमर्थ हो गया, और पता चला कि विश्व बैंक के 72 बिलियन डॉलर कर्ज के मुकाबले देश में कुछ ही सप्ताहों का विदेशी मुद्रा भण्डार बचा है, तब सरकार ने देश का 67 टन स्वर्ण (47 टन बैंक ऑफ़ इंग्लैंड को और 20 टन उस समय एक अज्ञात बैंक को) गिरवी रखकर तत्काल 2.2 बिलियन डॉलर का कर्ज लेने का फैसला किया. लोगों को बस इतना पता चला कि स्वर्ण को ज्यूरिख और स्विट्ज़रलैंड भेजा गया है. लेकिन किसके पास और उन देशों में कहाँ भेजा गया, यह अज्ञात था.
भारतीय शेयर बाजार पर क्रिप्टो बाजार में भारी गिरावट का असर 17.05.2022
पहला, दुनिया भर में बढ़ती ब्याज दरें। पिछले हफ्ते अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर को 0.5% से बढ़ाकर 1% कर दी थी। इसी तरह, भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर को 4% से बढ़ाकर 4.4% कर दिया है। आम तौर पर, बढ़ती ब्याज दरें बॉन्ड यील्ड (प्रतिफल) में बढ़त का कारण बनती है, और वे स्टॉक और क्रिप्टोकरेंसी जैसी जोखिम युक्त असेट की तुलना में निवेश के रूप में अधिक आकर्षक बन जाते हैं।
दूसरा कारक स्टेबल कॉइन्स Terra's UST का अनपेगिंग है जो पहले USD के साथ पेग (जुड़ा) था। इसने निवेशकों के बीच क्रिप्टोकरेंसी में भय और अविश्वास का संचार किया। साथ में, इस सप्ताह इन दो कारकों के चलते एक बड़ी क्रिप्टोकरेंसी गिरावट हुई।
भारतीय शेयर बाजार पर जोखिम
अगले हफ्ते Sensex कमजोर रह सकता है। उच्च रेपो दर, IMF के कम GDP पूर्वानुमान, तेल की बढ़ती कीमतों और कमजोर भारतीय रुपये ने मिलकर भारतीय शेयर बाजार की गिरावट में योगदान दिया। इस बीच, क्रिप्टोकरेंसी बाजार में गिरावट से पता चलता है कि कैसे निवेशक अधिक जोखिम युक्त असेट में विश्वास खो रहे हैं। भारतीय शेयर बाजार से FPI के हटने के कारण भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार $600 बिलियन से नीचे गिर गया है।
Sensex सीमित दायरे में थोड़ा नकारात्मक रह सकता है। हमारा मानना है कि यह अगले हफ्ते 52,500 के स्तर विदेशी मुद्रा बाजार इतना तरल क्यों है को छू सकता है। गंभीर गिरावट की अवस्था में Sensex 50,000 तक नीचे गिर सकता है।
Bangladesh Fuel Prices Hike: बांग्लादेश में 50% बढ़े पेट्रोल-डीजल के दाम, सड़कों पर उतरे लोग, जानें- ऐसे हालात क्यों बने
श्रीलंका के बाद अब बांग्लादेश आर्थिक संकट के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। यहां पेट्रोल में दामों में 50 फीसद तक की बढ़ोतरी की गई है। यह अब तक की सबसे बड़ी बढ़ोतरी है। यहां भी श्रीलंका जैसी स्थिति बन गई है। जानिए ऐसा क्यों हुआ.
ढाका, एजेंसी। श्रीलंका के बाद अब बांग्लादेश आर्थिक संकट के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। यहां पेट्रोल में दामों में 50 फीसद तक की बढ़ोतरी कर दी गई है। यहां भी श्रीलंका जैसी स्थिति बन गई है। बढ़ती महंगाई के कारण जनता सड़क पर उतर आई है। देश के कई शहरों में प्रदर्शन चल रहे हैं। गुस्साई जनता ने पुलिस वाहन को क्षतिग्रस्त कर दिया है। बांग्लादेश विदेशी मुद्रा बाजार इतना तरल क्यों है में जो वर्तमान हालात हैं उससे साफ है कि स्थितियां और बिगड़ सकती हैं।
ऊर्जा और खनिज संसाधन मंत्रालय ने क्या कहा?
बिजली, ऊर्जा और खनिज संसाधन मंत्रालय ने फ्यूल की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधन के दाम में हुई वृद्धि के चलते यह फैसला हुआ है। कम दाम पर ईंधन बेचने की वजह से बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन को फरवरी से जुलाई के बीच 8,014.51 टका का नुकसान हुआ है। मंत्रालय की प्रेस रिलीज में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईधन की कीमत बढ़ने से कई देश पहले ही यह फैसला ले चुके हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध और कोविड-19 महामारी ने तेलों के दाम बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाया है। इन दोनों घटनाक्रम के चलते तेलों के दाम में बड़ी बढ़ोतरी देखी जा रही है। बांग्लादेश में पेट्रोल के दाम में 51 फीसद तो डीजल में 42 फीसद का इजाफा हुआ है। रूस-यूक्रेन के चलते मांग और सप्लाई का समीकरण खराब हुआ और कोविड महामारी के कारण ओपेक देशों ने तेलों की सप्लाई कम कर दी। इससे पूरी दुनिया में सप्लाई पर असर देखा जा रहा है। इससे दाम में भारी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। बांग्लादेश की इस महंगाई के बाद लोग सड़कों पर उतर गए हैं। अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन देखा जा रहा है।
देश में आयात बढ़ने से हालात तेजी से बिगड़े
बांग्लादेश की हालत बिगड़ने के लिए सबसे बड़ी वजह है, यहां आयात का बढ़ना और निर्यात का घटना। यहां के केंद्रीय बैंक ने अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र भी किया है। आयात बढ़ने के कारण सीधे तौर पर इसका असर यहां के खजाने पर हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई, 2021 से लेकर मई 2022 के बीच 81.5 अरब डॉलर का आयात किया गया है। इसकी तुलना पिछले साल से की जाए तो आयात में 39 फीसद की बढ़त देखी गई है। इसका असर यह हुआ कि बांग्लादेश ने दूसरे देश से सामान मंगाने में ज्यादा पैसा खर्च किया और अपने सामान का निर्यात कम किया। इस तरह उसे घाटा हुआ। पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में आयात में बढ़ोतरी और निर्यात में कमी आई।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ समय से विदेशों में काम कर रहे बांग्लादेशियों की आय गिर रही है। यहां विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने की एक वजह यह भी रही। बढ़ते आयात ने हालात और बिगाड़ने का काम किया। विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल जुलाई तक यह 45 अरब डॉलर था। 20 जुलाई, 2022 को यह घटकर 39 डॉलर ही बचा। वर्तमान में बांग्लादेश के हालात इतने ज्यादा बिगड़ चुके हैं कि यहां इतना विदेशी विदेशी मुद्रा बाजार इतना तरल क्यों है मुद्रा भंडार है कि केवल 5 महीने तक ही सामान का आयात किया जा सकता है। इस बीच दुनियाभर में सामान की कीमतें बढ़ती हैं तो हालात और बिगड़ेंगे और देश को ऐसी चुनौतियों से निपटना मुश्किल हो जाएगा।
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