विश्व में समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार है और अगर ये परिवार में नहीं होता तो ये दुनिया में कहीं नहीं हो सकता। किसी बच्चे को अगर उसके बचपन से ही प्रेम और समर्पण करने की भावना अनुभव करने का अवसर न मिले, तो ये नहीं हो सकता।
क्या महिलाओं को बाहर काम पर जाना और कैरियर बनाना चाहिए?
आज हर दिन, ज्यादा से ज्यादा महिलायें नौकरियों और व्यवसायों में शामिल हो रहीं हैं, तो यहाँ सदगुरु एक सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहे हैं कि क्या महिलाओं को रोज़गार, व्यवसायों में लगना चाहिये या फिर घर पर ही रहना चाहिये।
प्रश्न : आजकल उन महिलाओं को कई बार तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है जो घर संभालती हैं और बाहर के किसी रोज़गार, व्यवसाय में नहीं हैं। जब उनके बच्चे छोटे हैं, तब भी लोगों का ऐसा रवैया रहता है। ऐसे में क्या करना चाहिए?
सद्गुरु: सामान्य रूप से, लोग आर्थिक ज़रूरतों के लिए काम करते हैं। अगर आप अपने काम को, चाहे वो जो भी हो, पूरे जुनून के साथ करते हैं, तो अलग बात है, मगर अधिकतर लोग आर्थिक लाभ के लिए ही काम करते हैं। तो अगर किसी परिवार में आर्थिक कारणों से महिलायें बाहर जा कर काम करतीं हैं या घर से ही आर्थिक गतिविधि में लगीं हैं, तो ये बिलकुल ठीक है। प्रश्न ये नहीं है कि आप को काम करना चाहिये या नहीं, प्रश्न ये है कि आप को उसकी जरूरत है या नहीं?
अपनी खुशहाली से महिलाओं के लिए पैसे कमाना क्यूं जरुरी है परे के जीवन को देखना
यह दुनिया, इसलिये सुंदर नहीं बनती क्योंकि आप पैसे कमाते हैं। ये चाहे किसी व्यक्ति का जीवन हो, या परिवार, समाज, या दुनिया, ये सब तब सुंदर होते हैं जब कुछ लोग अपने प्रेम के कारण जीते हैं, जो सच में अपनी खुशहाली को परे रख दूसरों तक पहुंचना चाहते हैं। यही दुनिया को सुंदर बनाता है।
मेरे व्यक्तिगत अनुभव में, मेरी माँ कभी काम करने बाहर नहीं गयी और मेरे पिता ने भी ये कभी नहीं सोचा होगा कि वो काम करेंगी। लेकिन क्या वो कोई बेकार व्यक्ति थी ? बिल्कुल नहीं। उनके बिना हम लोग क्या होते? उनका समर्पण, जिस ढंग से उन्होंने अपने बच्चों और पति के लिये अपना जीवन समर्पित किया, उसके कारण ही हम वो हो सके, जो हम आज हैं।
दूसरों के लिये चिंता, परवाह की एक गहरी भावना और अपनी व्यक्तिगत खुशहाली से परे जा कर जीवन को देखना, ये सब हमारे अंदर उन्हें देखकर ही आया। हम किसी भी तरह से इसे अनदेखा नहीं कर सकते क्योंकि उनका जीवन कभी भी खुद के बारे में नहीं था। दिन हो या रात, पूरी खुशी के साथ, प्रेम के साथ, वो परिवार की सेवा करती थीं। ये गुलामी नहीं थी, ये पूर्ण प्रेम के कारण होता था। अगर आप उनसे कहते कि उनका शोषण हो रहा है तो उन्हें इससे बहुत बुरा लगता, क्योंकि उनके लिये खुद को काम में लगाना प्रेम का एक अनूठा अनुभव था।
एक अंतर लाना
इसका मतलब ये नहीं है कि अगर एक महिला काम पर जाती है तो फिर वो ये नहीं कर सकती। अगर काम करने की ज़रूरत है तो उसे इसके बारे में कुछ करना होगा। एक बार फिर से, मेरी माँ का उदाहरण लें तो वे काम करने नहीं जाती थी पर वो ये भी सुनिश्चित करती थी कि घर पर जो भी किया जा सके, वो कर लिया जाये, जिससे वो चीज़ बाज़ार से खरीदनी न पड़े।
अपने बचपन से ही, जब तक मैं परिवार के साथ रहा, बाहर नहीं आया, तब तक मैं एक भी दिन ऐसे तकिये पर नहीं सोया जिस पर कुछ एम्ब्रॉयडरी का काम न किया हुआ हो। वे हमेशा ये सुनिश्चित करती थीं, कि कुछ एम्ब्रॉयडरी हो - भले ही एक छोटा सा तोता या एक छोटा फूल ही क्यों न हो। बिना इसके मेरा जीवन वैसा नहीं होता जैसा वो था। वो ये चीज़ बाज़ार से भी ला सकती थी, मेरे पिताजी के लिये यह कुछ मुश्किल न होता, पर माँ यह सुनिश्चित करती थी कि वह खुद यह काम करे। परिवार के लिए कुछ करने का यह उनका तरीका था। आप चाहे पैसा कमायें या उसे बचायें, ये परिवार के प्रति आप का योगदान ही है। तो एक स्त्री को क्या करना चाहिए, ये एक व्यक्तिगत पहलू है। लेकिन किसी को भी ऐसी कोई फिलोसोफी महिलाओं के लिए पैसे कमाना क्यूं जरुरी है बनाने की ज़रूरत नहीं है कि सभी महिलाओं को काम पर जाना ही चाहिये महिलाओं के लिए पैसे कमाना क्यूं जरुरी है या सभी महिलाओं को काम पर नहीं जाना चाहिये।
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