डिफ्लेटर इंडेक्स होते हैं जो कीमतों और मात्राओं के बीच अंतर की अनुमति देते हैं। सबसे आम डिफाल्टर वह है जिसे सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) पर लागू किया जाता है, जिसे सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) के रूप में भी जाना जाता है।

Repo Rate in Hindi

परिभाषा अपस्फीतिकारक

अर्थशास्त्र के क्षेत्र में, डिफ्लेटर शब्द एक गुणांक को संदर्भित करता है जिसका उपयोग अपस्फीति प्रक्रिया के विकास के लिए किया जाता है। दूसरी ओर, यह क्रिया, एक नाममात्र मौद्रिक मूल्य को दूसरी मुद्रा में परिवर्तित करने की क्रिया को संदर्भित करती है जो एक मुद्रा में व्यक्त की जाती है जिसमें निरंतर क्रय शक्ति होती है

अपस्फीतिकारक

एक डिफ्लेक्टर, मुद्रा अपस्फीति क्या है? इसलिए, उस समस्या को हल करने के लिए उपयोग किया जाता है जो कुछ आर्थिक मुद्रा अपस्फीति क्या है? चर को कम करके आंका जाता है। समय के साथ एक अर्थव्यवस्था के विकास का विश्लेषण करते समय, परिणाम कीमतों ( मुद्रास्फीति ) में वृद्धि से विकृत हो सकता है। इसीलिए मूल्य वृद्धि से परे वास्तविक विकास पर विचार करना आवश्यक है।

‘Repo Rate’ क्या है?

Repo Rate वह दर है, जिस दर पर कमर्शियल बैंक देश के केन्द्रीय बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) से अल्पकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऋण या कर्ज प्राप्त करते हैं। किसी भी देश का केन्द्रीय बैंक देश में बेहतर मौद्रिक नीति (Monetary Policy) के क्रियान्वयन के लिए विभिन्न प्रकार के टूल्स का इस्तेमाल करता है और इन्हीं टूल्स में रेपो दर (Repo Rate) भी शामिल है।

गौरतलब है कि, किसी भी अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह का अधिक मात्रा में होना महंगाई (Inflation) को जन्म देता है वहीं मुद्रा की मात्रा कम हो जाने से अपस्फीति (Deflation) जैसी समस्या उत्पन्न होती है। मौद्रिक नीति एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके द्वारा किसी देश का केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को संतुलित करता है ताकि उक्त दोनों परिस्थितियों से बचा जा सके और देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले।

कब और क्यों किया जाता है ‘Repo Rate’ में बदलाव

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति कमेटी (MPC) प्रत्येक दो महीनों में एक बार बैठक करती है मुद्रा अपस्फीति क्या है? और इस दौरान अर्थव्यवस्था की तात्कालिक स्थिति को देखते हुए विभिन्न दरों में बदलाव किये जाते हैं। रेपो दर (Repo Rate) को कम या ज्यादा करना भी रिजर्व बैंक मुद्रा अपस्फीति क्या है? की मौद्रिक नीति का ही हिस्सा है।

वर्तमान में महंगाई अपने चरम पर है और यही कारण है कि, रिजर्व बैंक लगातार रेपो दर (Repo Rate) में वृद्धि कर रहा है, जिसके चलते आम लोगों के लिए बैंकों से लोन लेना महंगा होता जा रहा है। मौद्रिक नीति कमेटी की 7 दिसंबर 2022 को हुई हालिया बैठक में रेपो दर को 35 Basis points बढ़ाने का निर्णय लिया गया, इससे पहले सितंबर माह में हुई बैठक में भी इसे 50 Basis points बढ़ाया गया था। करेंट रेपो दर की बात करें तो यह 6.25% है।

क्यों किया जाता है Repo Rate में बदलाव

जैसा कि, हमनें बताया Repo Rate वह दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक (Commercial Bank) रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं अतः यदि रिजर्व बैंक रेपो दर में वृद्धि करता है तो बैंकों के लिए RBI से कर्ज लेना पहले की तुलना में महंगा हो जाता है, लिहाजा बैंक भी अपने ग्राहकों को महंगी ब्याज दरों में ऋण मुहैया करते हैं।

ब्याज दरें महंगी होने के चलते आम लोग, छोटे एवं मध्यम उद्योग, कंपनियां इत्यादि कम मात्रा में बैंकों से ऋण लेती हैं और अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह पहले की तुलना में कम हो जाता है। Repo Rate के साथ ही रिजर्व बैंक के पास कई अन्य टूल्स भी हैं, जिनका इस्तेमाल कर वह अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को कम या ज्यादा करता है विस्तृत जानकारी के लिए “ रिजर्व बैंक तथा उसके कार्य ” वाला लेख पढ़ें।

‘Repo Rate’ में बदलाव से अर्थव्यवस्था एवं आम लोगों पर असर

रेपो दर में परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभाव को समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि, अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह किस प्रकार होता है। इस कार्य में बैंक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, मुद्रा अपस्फीति क्या है? बैंक कारोबारियों, छोटे-बड़े उद्योगों, कंपनियों, स्टार्ट-अप्स इत्यादि को ऋण देते हैं। मुद्रा आने से उद्योगों का विस्तार होता है तथा अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है और अंततः आम लोगों की जेब में मुद्रा आती है।

रेपो दर में वृद्धि या कमी करना अर्थव्यवस्था मुद्रा अपस्फीति क्या है? की तत्कालीन स्थिति पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए यदि देश में महंगाई अपने शीर्ष पर हो तो केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था से मुद्रा के प्रवाह को कम करने की दिशा में कार्य करता है परिणामस्वरूप रेपो दर में वृद्धि करी जाती है ताकि अधिकांश लोगों, उद्योगों आदि के लिए ऋण लेना पहले की तुलना में मुश्किल हो ऐसा होने से उद्योगों के पास मुद्रा की कमी होती है और आम लोगों तक मुद्रा पहले की तुलना में कम पहुँचती है।

हास्य व्यंग आलेख:नव उपनिवेशवाद-डॉ. अर्जुन दूबे

इस हास्‍य व्‍यंग्‍य आलेख में भारत के मानसिक दास्‍ता पर व्‍यंग्‍य करते हुए दो आलेख प्रकाशित किए जा रहे हैं । एक ‘मुद्रा संकुचन’ और दूसरा ‘श्रेष्‍ठ है हम’ । जहां ‘मुद्रा संकुचन’ में अर्थशास्‍त्र को हिन्‍दी साहित्‍य के माध्‍यम समझाने का प्रयास है तो वहीं ‘श्रेष्‍ठ हैं हम’ में अपनी श्रेष्‍ठता को भूलकर दूसरों को श्रेष्‍ठ समझने की प्रवृत्ति पर व्‍यंग्‍य किया गया है ।

nav upniveshvad

nav upniveshvad

मुद्रा संकुचन

मैं भाषा/साहित्य का विद्यार्थी; साहित्य में जो आनंद एवं सुख वह अन्यत्र कहां मिलेगा! भक्ति में मिलेगा, कोशिश तो करो । किस तरह की भक्ति-साकार अथवा निराकार!निराकार से उत्तम क्या है, न कोई खर्चा और न ही कहीं जाना!

सत्य वचन किंतु उस निराकार में कैसा आनंद मिलता है, बिना आकार वाले की कल्पना किये? तुम आकार के फेर में पड़े हो?क्यों न पडूं? तुम बिना आकार के हो? नहीं,नहीं आकार में हूं और आकार को तलाशता हूं, सुंदर आकार में मोह और आशक्ति; तभी तो गोसाईं जी लिखते हैं अथवा यूं कहो कि शब्द के माध्यम से आकार देते हैं -“रंगभूमि जब सिय पगु धारी। देखि रूप मोहे नर नारी।। “क्या अलौकिक दृश्य रहा होगा ! यह है साहित्य में सौंदर्य ! आंख नहीं तो कैसा सौंदर्य भान! केकरा खातिर करीं श्रृंगार जब पिया मोरे आन्हर! मन की आंख से नहीं हो पायेगा क्या? मन तो निराकार है । हां निराकार से साकार का भान करो और सौंदर्य आनंद लो.वह कैसे! गोस्वामी जी लिखते हैं-

श्रेष्ठ हैं हम!

हमारे श्रृषि मुनियों ने बहुत पहले शोध (परख) करके यह बता दिया था कि अमुक घटना किस कारण से होती है, अमुक बिमारी क्यों होती है और निदान क्या है, ज्ञान का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमें उनका कौशल और पारंगता नहीं दिखती है ।

अखबार पढिये तो प्राय: यह देखने को मिलता है कि हमारे देश के अमुक संस्थान/विश्वविद्यालय के अमुक विभाग से अमुक व्यक्ति को अमेरिका, इंग्लैंड अथवा यूरोप के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में शोध करने जा रहे हैं । क्यों वहां का उच्चकोटि का है? इसलिए । हमारे यहां का नहीं? बेकार की बात करते हो.वहां से शोध प्रकाशन करो, अहमियत बढ जायेगी,कूड़ा करकट के फेर में मत पडो़ ।

अभी तो कह रहे थे ज्ञान के समस्त विधाओं का भंडार कक्ष हमारा ही है ।
बेवकूफ मत बनो । वही करो जो सभी करने की कोशिश करते हैं । राजनेता, नौकरशाह आदि यूरोप अमेरिका क्यों जाते हैं, जानते हो? वहां की प्रणाली, व्यवस्था देखने, नहीं अध्ययन करने । अध्ययन में अधिक बल है ।अपने देश की प्राचीन सर्वोत्म प्रणाली और व्यवस्था छोड़ कर!

क्या होती है मुद्रास्फीति दर और कैसे डालेगी ये आपकी पॉकेट पर असर? यहां समझिए

बिज़नस न्यूज़ डेस्क- मुद्रास्फीति या मुद्रास्फीति किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में समय-समय पर विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं की मुद्रा अपस्फीति क्या है? कीमतों में सामान्य वृद्धि को दर्शाती है। जब सामान्य कीमतें बढ़ती हैं, तो क्रय शक्ति घट जाती है। किसी भी देश के लिए मुद्रास्फीति की उच्च दर या उसमें तेज गिरावट लोगों और देश की अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकती है।

अपस्फीति मुद्रास्फीति के विपरीत है
अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि अर्थव्यवस्था की जरूरत से ज्यादा पैसा छापने से महंगाई बढ़ती है। अपस्फीति मुद्रास्फीति के विपरीत है, यानी एक ऐसी स्थिति जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें समय के साथ तेजी से गिरती हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था में होने वाली किसी भी हलचल की सूरत में भारत को ख़राब स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ेगा क्योंकि अब यह व्यापार, निवेश और वित्त में कहीं अधिक वैश्वीकृत हो चुका है. आज यहां यूएस फेडरल रिज़र्व की कार्रवाइयां भारतीय रिज़र्व बैंक की तुलना में अधिक असर डालती हैं.

अमेरिकी अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी, जिन्होंने 2007 में अमेरिका के क्रेडिट बबल की भविष्यवाणी की थी, ने पिछले साल जुलाई में द गार्जियन में लिखा था: ‘आज की बेहद अस्पष्ट मौद्रिक और राजकोषीय नीतियां, जब कई नकारात्मक आपूर्ति संकटों का सामना करती हैं, तब नतीजा 1970 के दशक में आए स्टैगफ्लेशन (मंदी के साथ उच्च मुद्रास्फीति) जैसा हो सकता है. असल में उस समय की तुलना में आज जोखिम भी बड़ा है.’

रूबिनी ने यह यूक्रेन पर रूसी आक्रमण, जिसने दुनिया में संभावित खाद्य और ऊर्जा आपूर्ति संकट को गहरा दिया है, से कई महीनों पहले कहा था. तब कई अर्थशास्त्री इस बहस में शामिल हो गए हैं कि क्या 1970 के जैसा स्टैगफ्लेशन आ सकता है- यानी उच्च मुद्रास्फीति के साथ आय में ठहराव का एक लंबा और कमजोर दौर.

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