बेड़िया समुदाय के उत्थान के लिए सरकारी कोशिशों को आप किस नजर से देखते हैं?
ब्रिक्स (BRICS) : गतिशील बहु-ध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था
प्रश्न: एक समूह के रूप में ब्रिक्स (BRICS)में आंतरिक विरोधाभास विद्यमान प्रतीत होते है, जो गतिशील बहु-ध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में इसके एक प्रभावी मंच के रूप में उभरने को कठिन बनाता है। समालोचनात्मक चर्चा कीजिए।
- ब्रिक्स समूह के विचार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- ब्रिक्स समूह के आंतरिक विरोधाभास का विवरण दीजिए।
- उन कारकों की चर्चा कीजिए जो ब्रिक्स को बहु-ध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक प्रभावी बहुपक्षीय मंच बने रहने में सहायता करते हैं।
- उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) पाँच उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है। वर्तमान में ब्रिक्स राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के लगभग एक चौथाई भाग का प्रतिनिधित्व करता है। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स राष्ट्रों का वैश्विक आर्थिक संवृद्धि में आधे से अधिक का योगदान है।
हालांकि, बहु-ध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में एक समूह के रूप में ब्रिक्स का उदय एक महत्वपूर्ण संगठन के रूप में क्रमिक रूप से हुआ है। हाल के समय में कई विद्वानों ने ब्रिक्स समूह के मध्य आंतरिक भारत के व्यापार संबंधी विरोधाभास विरोधाभासों के बढ़ने के साथ इसके महत्व और प्रासंगिकता पर प्रश्न-चिन्ह उठाया है:
- प्रतिस्पर्धा: सभी ब्रिक्स देश क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरना चाहते हैं और इस प्रकार उनमें से कुछ देशों के मध्य कुछ विषयों पर परस्पर प्रतिस्पर्धा व्याप्त है।
- भिन्न-भिन्न राजनीतिक प्रणालियाँ: ब्राज़ील, भारत और दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक व्यवस्था है जबकि रूस और चीन में सत्तावादी (authoritarian) व्यवस्था व्याप्त है।
- व्यापार संबंधी विरोधाभास: ब्राजील और रूस वस्तुओं के निर्यातक देश हैं और इस प्रकार वस्तुओं का मूल्य अधिक होने से इन्हें लाभ प्राप्त होता है जबकि भारत और चीन वस्तुओं के आयातक देश हैं जिन्हे कम मूल्य वाली वस्तुओं से लाभ प्राप्त होता है।
- क्षेत्रीय मुद्दे: चीन और भारत के मध्य कई विवादित क्षेत्रीय मुद्दे हैं तथा भारत द्वारा चीन के वर्चस्व वाली प्रत्येक संस्था को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।
- बहुपक्षीय मंचों के सुधारों से संबंधित वैचारिक मतभेद: चीन और रूस तीन अन्य देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के रूप में सम्मिलित करने का केवल सैद्धांतिक रूप से समर्थन करते हैं बल्कि इस संबंध में कोई वास्तविक प्रगति अभी तक नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त, भारत एकमात्र ब्रिक्स देश है जो अभी तक चीन द्वारा समर्थन न किए जाने के कारण नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group:NSG) का सदस्य नहीं बन पाया है।
राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि विरोधाभास की स्थिति में निजता का अधिकार आरटीआई पर लागू होगा
बिजनेस रेमेडीज/नई दिल्ली। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) और निजता के अधिकार के बीच विरोधाभास होने पर किसी व्यक्ति भारत के व्यापार संबंधी विरोधाभास का निजता का मौलिक अधिकार ही लागू होगा। चंद्रशेखर ने डिजिटल निजी आंकड़ा संरक्षण (डीपीडीपी) विधेयक 2022 के मसौदे पर हितधारकों के साथ एक चर्चा भारत के व्यापार संबंधी विरोधाभास के दौरान कहा कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जबकि सूचना भारत के व्यापार संबंधी विरोधाभास का अधिकार नहीं है। मंत्री ने कहा, निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जबकि सूचना का अधिकार नहीं है। यदि दोनों के बीच विवाद होता है, तो मौलिक अधिकार प्रभावी होगा। वह इस सुझाव का जवाब दे रहे थे कि डीपीडीपी विधेयक 2022 में आरटीआई को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। डीपीडीपी के मसौदे में यह प्रस्ताव किया गया है कि इस अधिनियम के प्रावधान और इस समय लागू किसी अन्य कानून के प्रावधान के बीच किसी भी विरोधाभास की स्थिति में, इस अधिनियम के प्रावधान प्रभावी रहेंगे। विधेयक में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा आठ में संशोधन का प्रस्ताव है। इसके तहत ऐसे मामलों में व्यक्तिगत जानकारी साझा करने को सीमित किया जाएगा, जिनका किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है।
भारत के व्यापार संबंधी विरोधाभास
प्राचीन काल से चीन-भारत में सांस्कृतिक, आर्थिक और व्यापारिक आदान-प्रदान की परंपरा रही है। चीन और भारत के बीच संबंध बहुत जटिल हैं, जिसे एक वाक्य में समझाया नहीं जा सकता है। लेकिन यह बात स्पष्ट है कि दो विशाल विकासशील देशों के रूप में चीन और भारत के बीच सतत विकास प्रक्रिया में संदेह या प्रतिस्पर्धा के बजाय संचार और सहयोग की आवश्यकता है। हाल ही में चीनी राज्य परिषद का विकास अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ता और ताईहे थिंक टैंक संस्थान के वरिष्ठ शोधकर्ता तिंग यीफ़ान ने चाइना मीडिया ग्रुप (सीएमजी) के संवाददाता को दिए एक खास इंटरव्यू में यह बात कही।
भारत के व्यापार संबंधी विरोधाभास
तारिक अजीज / सीएसई
राई नृत्य के घुंघरुओं की खनक जब कानों में पड़ती है तो खुद-ब-खुद पैर थिरकने लगते हैं। ऐसी नृत्य कला में निपुण बेड़िया जनजाति के गांवों में जाएं तो कानों में आज भी आवाज आती है “क” से कबूतर और “ख” से खरगोश. तो दूसरे कान में ऐसी आवाज आती है, जिसे यहां लिखना संभव नहीं। ऐसे सामंती परिवेश और अपराधिक जनजाति अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित बेड़िया समुदाय के बीच 19 साल पहले एक ऐसा शख्स आकर बस गया जो इनकी नजरों में बाहरी था। लेकिन समय के साथ बेड़िया समुदाय की संस्कृति में वह इस कदर रच-बस गया भारत के व्यापार संबंधी विरोधाभास कि समुदाय ने उसे अपना मान लिया। इस शख्स ने समुदाय द्वारा दी गई मड़ई को ही अपना बसेरा बना लिया। उसने सदियों से चली आ रही बेड़िया परंपरा को आत्मसात करते हुए उनके अंधेरे और गुमनामी भरे जीवन में उजाला करने की एक अदद कोशिश शुरू की। इसकी शुरूआत समुदाय के बच्चों को पढ़ाने से की। बाद में बच्चों को मुख्यधारा के सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाकर उनकी एक पहचान सुनिश्चित करने की कोशिश अब तक जारी रखे हुए हैं। अपने इस सफर में उन्हें कई बार जान से मारने की धमकी मिली। कई बार हमले भी हुए हैं, लेकिन “एकला चलो” के अपने अटल विश्वास के दम पर उनके कदम अब तक नहीं लड़खड़ाए हैं। यह शख्स पिछले 32 सालों से पहले दिल्ली फिर वाराणसी, राजस्थान और अब मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में बेड़िया समुदाय के बीच रहकर ही उनकी डगर को आसान बनाने की कोशिश में जुटा भारत के व्यापार संबंधी विरोधाभास है। अनिल अश्विनी शर्मा ने अजीत सिंह से उनके अब तक के संघर्ष के बारे में बातचीत की
लियोन्टीफ विरोधाभास
यह अर्थमितीय खोज , हेक्शर-ओहलिन सिद्धांत ("एच-ओ सिद्धांत") को आनुभविक रूप से परीक्षण करने के वासिली डब्ल्यू। लेओन्टिफ़ के प्रयास का परिणाम था । 1953 में, लेओन्टिफ ने पाया कि संयुक्त राज्य अमेरिका - दुनिया में सबसे अधिक पूंजी-प्रचुर मात्रा में देश - निर्यात की जाने वाली वस्तुएं जो पूंजी-गहन की तुलना में अधिक श्रम -गहन थीं, एच-ओ सिद्धांत के विपरीत। [१] इस परिणाम से लियोन्टीफ ने अनुमान लगाया कि अमेरिका को अपनी आर्थिक वास्तविकताओं से मेल खाने के लिए अपनी प्रतिस्पर्धी नीति को अपनाना चाहिए।
- १९७१ में रॉबर्ट बाल्डविन ने दिखाया कि १९६२ के व्यापार डेटा में अमेरिकी निर्यात की तुलना में अमेरिकी आयात २७% अधिक पूंजी-गहन थे , लेओन्टिफ़ के समान उपाय का उपयोग करते हुए। [2][3]
- 1980 में एडवर्ड लीमर ने आयात और निर्यात के समान डॉलर मूल्य (यानी वास्तविक विनिमय दर के आधार पर) की कारक सामग्री की तुलना करने के लिए लियोन्टीफ की मूल कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया । हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि अमेरिकी विरोधाभास अभी भी 1962 के बाल्डविन के आंकड़ों में प्रकट होता है, जब शुद्ध निर्यात और घरेलू खपत की कारक सामग्री की तुलना करने के लिए एक सही पद्धति का उपयोग किया जाता है। [४][५] द्वारा अर्थमितीय साहित्य के 1999 के एक सर्वेक्षण ने निष्कर्ष निकाला कि विरोधाभास बना रहता है, लेकिन गैर-अमेरिकी व्यापार में कुछ अध्ययन इसके बजाय एच-ओ सिद्धांत के अनुरूप थे।
- 2005 में क्वोक एंड यू ने अमेरिकी व्यापार आंकड़ों में कम या शून्य विरोधाभास के लिए बहस करने के लिए एक अद्यतन पद्धति का इस्तेमाल किया, हालांकि विरोधाभास अभी भी अन्य विकसित देशों में प्राप्त हुआ है । [6]
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