विदेशी मुद्रा ट्रेडिंग रोबोट

एक विदेशी मुद्रा व्यापार रोबोट विदेशी मुद्रा व्यापार संकेतों के एक सेट पर आधारित एक कंप्यूटर प्रोग्राम है जो यह निर्धारित करने में मदद करता है कि किसी दिए गए बिंदु पर मुद्रा जोड़ी को खरीदना या बेचना है या नहीं । विदेशी मुद्रा रोबोट को ट्रेडिंग के मनोवैज्ञानिक तत्व को हटाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो हानिकारक हो सकता है। जबकि ट्रेडिंग सिस्टम ऑनलाइन खरीदा जा सकता है, व्यापारियों को इस तरह से खरीदते समय सावधानी बरतनी चाहिए।

चाबी छीन लेना

  • स्वचालित विदेशी मुद्रा व्यापार रोबोट स्वचालित सॉफ्टवेयर प्रोग्राम हैं जो ट्रेडिंग सिग्नल उत्पन्न करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  • जबकि वे मुनाफे की संभावना का विज्ञापन करते हैं, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि विदेशी मुद्रा व्यापार रोबोट अपनी क्षमताओं में सीमित हैं और मूर्ख नहीं हैं।

विदेशी मुद्रा ट्रेडिंग रोबोट को समझना

विदेशी मुद्रा ट्रेडिंग रोबोट स्वचालित सॉफ्टवेयर प्रोग्राम हैं जो ट्रेडिंग सिग्नल उत्पन्न करते हैं। इन रोबोटों में से अधिकांश मेटा ट्रेडर के साथ बनाए गए हैं, जो एमक्यूएल स्क्रिप्टिंग भाषा का उपयोग करते हैं, जो व्यापारियों को ट्रेडिंग सिग्नल उत्पन्न करने या ऑर्डर देने और ट्रेडों का प्रबंधन करने देता है।

इंटरनेट पर खरीदारी के लिए स्वचालित विदेशी मुद्रा व्यापार रोबोट उपलब्ध हैं, लेकिन व्यापारियों को ऐसी किसी भी व्यापारिक प्रणाली को खरीदते समय सावधानी बरतनी चाहिए । कई बार, कंपनियां कुछ हफ्ते बाद गायब होने से पहले मनी-बैक गारंटी के साथ ट्रेडिंग सिस्टम बेचने के लिए रातोंरात वसंत कर देंगी।

जोखिम और अवसर के आकलन के लिए कंपनियां वैध प्रणाली नहीं हैं। वे एक ट्रेड के लिए सबसे संभावित परिणाम के रूप में सफल ट्रेडों को चुन सकते हैं या किसी सिस्टम को बैक करते समय शानदार परिणाम उत्पन्न करने के लिए वक्र-फिटिंग का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन जोखिम और अवसर का आकलन करने के लिए वैध सिस्टम नहीं हैं। विदेशी मुद्रा व्यापार रोबोटों के खिलाफ एक और आलोचना यह है कि वे अल्पावधि में मुनाफा कमाते हैं लेकिन दीर्घकालिक पर उनका प्रदर्शन मिश्रित होता है। यह मुख्य रूप से है क्योंकि वे एक निश्चित सीमा के भीतर स्थानांतरित करने और रुझानों का पालन करने के लिए स्वचालित हैं। नतीजतन, अचानक मूल्य आंदोलन अल्पावधि में किए गए मुनाफे को मिटा सकता है।

महत्वपूर्ण

ट्रेडिंग सिस्टम के लिए “पवित्र कब्र” जैसी कोई चीज नहीं है, क्योंकि अगर किसी ने एक पैसा बनाने वाली प्रणाली विकसित की जो कि विफल सबूत थी, तो वे इसे आम जनता के साथ साझा नहीं करना चाहेंगे। यही कारण है कि संस्थागत निवेशक और हेज फंड अपने ” ब्लैक बॉक्स ” व्यापारिक कार्यक्रमों को ताला और चाबी के नीचे रखते हैं।

अपनी खुद की विदेशी मुद्रा ट्रेडिंग रोबोट का विकास करना

विदेशी मुद्रा व्यापारी थर्ड-पार्टी फॉरेक्स ट्रेडिंग रोबोट पर जोखिम लेने के बजाय अपने स्वयं के स्वचालित ट्रेडिंग सिस्टम को विकसित करने पर विचार कर सकते हैं।

आरंभ करने का सबसे अच्छा तरीका एक विदेशी मुद्रा व्यापार दलाल के साथ एक डेमो खाता खोलना है जो मेटा ट्रेडर का समर्थन करता है और फिर एमक्यूएल स्क्रिप्ट विकसित करने के साथ प्रयोग करना शुरू करता है। एक ऐसी प्रणाली विकसित करने के बाद, जो बैकटेक करते समय अच्छा प्रदर्शन करती है, व्यापारियों को लाइव वातावरण में सिस्टम की प्रभावशीलता का परीक्षण करने के लिए कार्यक्रम को पेपर ट्रेडिंग पर लागू करना चाहिए। असफल कार्यक्रमों को फिर से शुरू किया जा सकता है, जबकि सफल कार्यक्रमों को वास्तविक पूंजी की बड़ी मात्रा के साथ जोड़ा जा सकता है।

सामान्य तौर पर, कई व्यापारी अपने मौजूदा तकनीकी ट्रेडिंग नियमों के आधार पर स्वचालित ट्रेडिंग सिस्टम विकसित करने का प्रयास करते हैं। ऐसी कुछ प्रणालियाँ दूसरों की तुलना में अधिक सफल हैं। एक उदाहरण एक व्यापारी हो सकता है जो ब्रेकआउट्स के लिए देखता है और स्टॉप-लॉस और टेक-प्रॉफिट बिंदु निर्धारित करने के लिए एक विशिष्ट रणनीति है । इन नियमों को मैन्युअल रूप से निष्पादित किए जाने के बजाय एक स्वचालित फैशन में संचालित करने के लिए आसानी से संशोधित किया जा सकता है । व्यापारियों को इन प्रणालियों पर नज़र रखनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे अपेक्षित रूप से काम कर रहे हैं और जब आवश्यक हो तो समायोजन करें।

8 विषय प्रोग्राम्स में विदेशी मुद्रा 2023

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रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा भारत का विदेशी मुद्रा भंडार, जानिए इससे कैसे होगा फायदा

विदेशी मुद्रा भंडार

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, एक जनवरी को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) 4.483 अरब डॉलर बढ़कर सर्वकालिक ऊंचाई पर पहुंच गया। इसने 585.324 अरब डॉलर के स्तर पर है। जबकि इससे पिछले 25 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2900 लाख डॉलर की गिरावट के साथ 580.841 अरब डॉलर हो गया था।

इसलिए आई तेजी
समीक्षाधीन अवधि में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) में भारी वृद्धि के कारण मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई। विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती है। रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार समीक्षावधि में एफसीए 4.168 अरब डॉलर बढ़कर 541.642 अरब डॉलर हो गईं। एफसीए को दर्शाया डॉलर में जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पाउंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्राएं भी शामिल होती है।

37.026 अरब डॉलर हो गया स्वर्ण भंडार
आंकड़ों के अनुसार एक जनवरी को समाप्त सप्ताह के दौरान देश का स्वर्ण भंडार का मूल्य 3150 लाख डॉलर बढ़कर 37.026 अरब डॉलर रह गया। देश को अंतरराष्ट्रीय मु्द्रा कोष (आईएमएफ) में मिला विशेष आहरण अधिकार 1.510 करोड़ डॉलर पर समान है। आईएमएफ के पास देश के भंडार की स्थिति भी पिछले हफ्ते के समान 5.145 अरब डॉलर पर रही।

क्या है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। यह आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

आइए जानते हैं इसके फायदे।

  • साल 1991 में देश को पैसा जुटाने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था। तब सिर्फ 40 करोड़ डॉलर के लिए भारत को 47 टन सोना इंग्लैंड के पास गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन मौजूदा स्तर पर, भारत के पास एक वर्ष से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त मुद्रा भंडार है। यानी इससे एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से की जा सकती है, जो इसका सबसे बड़ा फायदा है।
  • अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है और व्यापारिक साझेदारों का विश्वास अर्जित करता है। इससे वैश्विक निवेशक देश में और अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं।
  • सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीदी का निर्णय बी ले सकती है क्योंकि भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है।
  • इसके अतिरिक्त विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, एक जनवरी को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) 4.483 अरब डॉलर बढ़कर सर्वकालिक ऊंचाई पर पहुंच गया। इसने 585.324 अरब डॉलर के स्तर पर है। जबकि इससे पिछले 25 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2900 लाख डॉलर की गिरावट के साथ 580.841 अरब डॉलर हो गया था।

इसलिए आई तेजी
समीक्षाधीन अवधि में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) में भारी वृद्धि के कारण मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई। विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती है। रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार समीक्षावधि में एफसीए 4.168 अरब डॉलर बढ़कर 541.642 अरब डॉलर हो गईं। एफसीए को दर्शाया डॉलर में जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पाउंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्राएं भी शामिल होती है।

37.026 अरब डॉलर हो गया स्वर्ण भंडार
आंकड़ों के अनुसार एक जनवरी को समाप्त सप्ताह के दौरान देश का स्वर्ण भंडार का मूल्य 3150 लाख डॉलर बढ़कर 37.026 अरब डॉलर रह गया। देश को अंतरराष्ट्रीय मु्द्रा कोष (आईएमएफ) में मिला विशेष आहरण अधिकार 1.510 करोड़ डॉलर पर समान है। आईएमएफ के पास देश के भंडार की स्थिति भी पिछले हफ्ते के समान 5.145 अरब डॉलर पर रही।

क्या है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। यह आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

वक्त की जरूरत है रुपये में व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य के मुकाबले मजबूत और स्थिर होगी भारतीय मुद्रा

रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करनी होगी जिसके लिए भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

[डा. सुरजीत सिंह]। हाल में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। डालर के निरंतर मजबूत होने से महत्वपूर्ण मुद्राएं कमजोर पड़ने लगी हैं। विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगे हैं, जिसके चलते वैश्विक वृद्धि दर घट रही है। आर्थिक परिदृश्य बदलने से वैश्विक भू-राजनीति भी बदल रही है। भारत सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ किया है कि इन बदलते वैश्विक हालात के लिए जिम्मेदार अमेरिकी डालर पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए?

चीन पर निर्भरता कम करने की चुनौती (फाइल फोटो)

इस संदर्भ में आरबीआइ ने एक नई शुरुआत करते हुए यह घोषणा की कि निर्यातक एवं आयातक रुपये में भी व्यापार कर सकेंगे। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं डालर में होने वाली व्यापार निर्भरता को कम करना है। रुपये में होने वाले पारस्परिक लेनदेन के लिए आरबीआइ ने एक प्रणाली विकसित की है। इससे निर्यात और आयात की कीमत और चालान सभी कुछ रुपये में ही होगा।

भाजपा को इस पर विचार करना होगा कि क्या देश की सबसे पुरानी पार्टी का अवसान राष्ट्रहित में होगा?

विश्व की बदलती आर्थिक परिस्थितियों में बहुत से देश न चाहते हुए भी अपना व्यापार डालर में करने को मजबूर हैं। भारत 86 प्रतिशत व्यापार डालर में करता है। भारत के आयात, निर्यात से ज्यादा होने के कारण अधिक डालर की आवश्यकता होती है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान भारत का कुल निर्यात 229.05 अरब डालर एवं आयात 378.53 अरब डालर का हुआ। रुपये-डालर की विनिमय दर को बनाए रखने के लिए आरबीआइ 50 अरब डालर से अधिक व्यय कर चुका है। भारत की तरह दुनिया का भी अधिकांश व्यापार डालर में ही होता है। विश्व के सभी देश डालर के सापेक्ष अपनी-अपनी विनिमय दर को स्थिर करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दर को बढ़ा दिया है, जिससे विश्व के धन का प्रवाह अमेरिका की तरफ होने लगा है। इससे डालर और मजबूत होता जा रहा है।

तवांग मुठभेड़ में निहित संदेश स्पष्ट है कि भारत को चीन के साथ युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए।

इन परिस्थितियों में डालर के दबदबे को कम करने के लिए भारत सरकार ने सही समय कैसे विदेशी मुद्रा व्यापार करने के लिए पर सही पहल की है। रुपये में व्यापार करने का फैसला ऐसे समय में आया है, जब दुनिया के अधिकतर देश न सिर्फ मुद्रा भंडार में कमी का सामना कर रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निपटान में कठिनाइयों से भी जूझ रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत की यह व्यवस्था विनिमय दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिमों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी। यह उन भारतीय निर्यातकों की समस्या को कम करेगी, जिनका भुगतान कैसे विदेशी मुद्रा व्यापार करने के लिए युद्ध के कारण अटका हुआ है। यह रूस और ईरान जैसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में मददगार होगी, जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है। रुपये में व्यापार से विश्व भर में न सिर्फ इसकी स्वीकृति बढ़ेगी, बल्कि विश्व में भारत का अर्थिक स्तर भी बढ़ेगा।

विदेश मंत्रालय के सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि अनेक देशों विशेष रूप से श्रीलंका, मालदीव, विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देश, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी कैसे विदेशी मुद्रा व्यापार करने के लिए देशों ने भी रुपये में व्यापार करने में अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए रूस सहर्ष तैयार है। रुपये-रूबल में व्यापार के बाद रुपया-रियाल एवं रुपया-टका में व्यापार की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है। यदि इन सभी देशों को किया जाने वाला भुगतान रुपये में होगा तो इसका सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह भी भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में रुपया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करेगा।

कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह व्यवस्था उन देशों में ही सफल हो पाएगी, जहां आयात और निर्यात लगभग बराबर है। वे यह भी प्रश्न करते हैं कि यह व्यवस्था उन देशों में कैसे लागू होगी, जिन देशों के पास बैलेंस शेष रह जाएगा। भारत सरकार इसके लिए कई क्षेत्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स के साथ एक रिजर्व मुद्रा की व्यवस्था बना सकती है, जिससे जुड़े हुए देश पारस्परिक रूप से आपसी मुद्राओं में व्यापार कर सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस व्यवस्था के सफल होते ही विश्व का आर्थिक खेल ही बदल जाएगा।

इस प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के महत्व को कम करना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये को बेहतर बनाने की एक शुरुआत करना है। यह समय की मांग भी है कि भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार एक-दूसरे के लिए अधिक खुले विकल्प रखें एवं विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों के संबंध में रुपये को अधिक उदार बनाएं। इसके लिए आवश्यक है कि रुपये के संदर्भ में एक मजबूत विदेशी मुद्रा बाजार बनाया जाए। बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यकतानुसार सुधार निरंतर जारी रहने चाहिए।

पिछली सदी के नौवें दशक में जब भारत एक बंद अर्थव्यवस्था थी, विदेशी मुद्रा दुर्लभ थी और डालर ‘भगवान’ था। बदलते समय के साथ रूस एवं चीन ने हमारे समक्ष उदाहरण पेश किया कि डालर के बिना भी अर्थव्यवस्था को चलाया जा सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत और स्थिर बनेगा। रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि करनी होगी, जिसके लिए भारत को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी, जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

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