मिस्र विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियां

अपेक्षा से ज़्यादा मान को EGP के लिए घनात्मक (बाजार में तेज़ी) माना जाना चाहिए वही अपेक्षा से कम मान को EGP के लिए ऋणात्मक (मंदी) माना जाना चाहिए.

विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियां Data

उच्च जोखिम चेतावनी: फॉरन एक्सचेंज ट्रेडिंग में उच्च स्तर का खतरा होता है जो हर निवेशकों के लिए सही नहीं हो सकता. लीवरेज अधिकतम खातर और हानि के अनावरण को उत्पन्न करता है. इससे पहले कि आप निर्णय लें फॉरन एक्सचेंज में ट्रेड करने का, ध्यान अपने निवेश के उद्देश्यों, अनुभव स्तर, और खतरा उठाने की सहिष्णुता पर विचार करें. आप कुछ या अपनी प्रारंभिक निवेश को खो सकते हैं. बिल्कुल भी उस पैसे को निवेश ना करें जो आप खोने को बर्दाश्त नहीं कर सकते. अपने आप को शिक्षित करें उन खतरों से जो फॉरन एक्सचेंज ट्रेडिंग से संबंधित हैं, और सलाह लें किसी स्वतंत्र आर्थिक या कर सलाहकार से अगर आपके पास कोई भी प्रश्न हैं तो. कोई भी डाटा या जानकारों जो दी जाती है वे केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है, और यब ट्रेडिंग आशय या सलाह पर नियत नहीं है. पिछले निष्पादन भविष्य के परिणामों के लिए परियाचक नहीं हैं.

विश्लेषणात्मक रिपोर्टिंग उपकरण

निम्नलिखित नवीनतम घटनाओं फोरेक्स न्यूज़ कैलेंडरके माध्यम से हर व्यापारी के लिए महत्वपूर्ण है यह बाजार में आने वाली घटनाओं और संभव परिवर्तनों का एक संकेत के रूप में कार्य करता है. कैलेंडर में जानकारी को शामिल किया गया इनके बारे में इन्फ्लेशन रेट, कंस्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स, रियल एस्टेट इंडेक्स, मैन्युफैक्चरिंग PMI,, कंस्ट्रक्शन स्पेंडिंग, रिटेल सेल्स, ट्रेड बैलेंस और प्रमुख घोषणाएं अमरीका, ग्रेट ब्रिटेन, जापान और अन्य विकसित देशों के लिए . तो, सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय घटनाक्रम का पता लगाया जा सकता है और भविष्यवाणी करने और संभव अस्थिरता और बदलते बाजार के मामले में कार्रवाई करने के लिए किस तरह पर निर्णय लेने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

टॉप मार्केट गेनर और हारने वाले एक है अद्वितीय और शक्तिशाली विश्लेषणात्मक उपकरण, जो तुरंत शीर्ष बाज़ार मूवर्स की गणना करने में सक्षम है.एक दूसरे के भीतर उपकरण 10 अलग-अलग व्यापारिक साधन प्रदान करता है जो कि चयनित अवधि (1 दिन से 1 वर्ष तक) के लिए सबसे ज्यादा वृद्धि (टॉप आर्थिक कैलेंडर विदेशी मुद्रा गेनर) और सबसे बड़ी कमी (शीर्ष हारने वालों).

स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध सभी कंपनियों (एक बार प्रति तिमाही, छः महीने या एक वर्ष) नियमित रूप से और उनके वित्तीय और औद्योगिक गतिविधियों पर एक अनिवार्य आधार सार्वजनिक रिपोर्ट पर उपलब्ध कराते हैं.

रिपोर्ट की रिलीज की तारीख अग्रिम में जानी जाती है और रिपोर्ट की सामग्री स्टॉक एक्सचेंज पर कंपनी के स्टॉक की कीमतों और लाभांश की रकम पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकती है.

स्टॉक संपत्ति में हिस्सेदारी का प्रतिनिधित्व करते हैं और जारी करने के लिए कंपनियों की आय . स्टॉक कॉन्ट्रैक्ट्स फॉर डिफरेंस (CFD) कि उपकरणों रहे हैं निवेशकों के स्वामित्व में हिस्सेदारी के बिना कोटेशन में परिवर्तन का एक परिणाम के रूप में तरल शेयरों लाभ बनाने के लिए अनुमति देते हैं इक्विटी CFDs में एक की स्थिति पकड़ के लिए मिल जाएगा या घोषणा की डिविडेंड के बराबर डिविडेंड अड्जस्टमेंट्स शुल्क लिया जाएगा .

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विदेशी मुद्रा और CFD जैसे ट्रेडिंग लीवरेज्ड उत्पाद सभी निवेशकों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकते हैं क्योंकि वे आपकी पूंजी में उच्च स्तर का जोखिम रखते हैं। यह वास्तव में महत्वपूर्ण है कि आप किसी भी पैसे का व्यापार न करें जिसे आप खोना नहीं चाहते क्योंकि आपने चाहे कितना भी शोध किया हो, या आप अपने व्यापार में कितने आश्वस्त हैं, हमेशा एक समय होगा जो आप खो देते हैं।

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प्रधान संपादक की कलम से

सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि आयात पर निर्भरता कम करने के लिए हम आत्मनिर्भरता की राह पर आक्रामक ढंग से चलें. गिरता रुपया सरकार के लिए आर्थिक सुधारों की रफ्तार बढ़ाने की खातिर अलार्म बेल होना चाहिए

9 सितंबर, 2020

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2022,
  • (अपडेटेड 25 जुलाई 2022, 3:12 PM IST)

अरुण पुरी

कई लोग देश की मुद्रा के विनिमय मूल्य को राष्ट्रीय गौरव से जोड़कर देखते हैं. यह धारणा गलत है क्योंकि मुद्रा की विनिमय दर कई ऐसी वजहों से ऊपर-नीचे होती रह सकती है जो उस देश के नियंत्रण में नहीं होते, जैसे इस दफा यूक्रेन की जंग. हां, विनिमय दर किसी न किसी स्तर पर अर्थव्यवस्था की मजबूती की झलक जरूर देती है, भले ही वह मोटे तौर पर बाजार की ताकतों से तय होती हो. कमजोर होते रुपए का मतलब है कि निवेशक रुपए में लगाई अपनी पूंजी कई वजहों से बेच रहे हैं. गिरते रुपए का अर्थ है कि हमारा निर्यात उन सेक्टर्स में बढ़ गया है जहां आयात का हिस्सा कम है. पर हमारा आयात महंगा हो गया है. खासकर तेल, खाद और खाने के तेल सरीखी अहम चीजों में हम आयात पर निर्भर हैं.

विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक जबरदस्त उतार-चढ़ाव से बचने के लिए अपनी मुद्राओं की विनिमय दर पर पैनी नजर रखते हैं. इस लिहाज से भारतीय रिजर्व बैंक डॉलर के मुकाबले रुपए की मनोवैज्ञानिक सीमा 80 मानता दिखता है. चिंता यह थी कि रुपया अगर इस स्तर को पार कर गया तो गिरावट का सिलसिला इतना तेज हो सकता है कि अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मच जाए. खतरे का वह निशान 19 जुलाई को थोड़े वक्त के लिए पार हो गया और तब रिजर्व बैंक दखल देकर उसे किसी तरह 79.95 रुपए पर लाया. पर अगले ही दिन रुपया डॉलर के मुकाबले 80.05 पर बंद हुआ.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में एक लिखित बयान में ठीक ही इशारा किया कि रुपए के गिरने की वजह वैश्विक ताकतें हैं और यह भारत के नियंत्रण से बाहर है. फरवरी के आखिरी दिनों में रूस-यूक्रेन की जंग एक अप्रत्याशित घटना थी जिसकी वजह से तेल, अनाज और खाद की वैश्विक कीमतें आसमान छूने लगीं और अनेक बड़े बाजार औंधे मुंह गिरे. फिर मई में अमेरिकी फेडरल बैंक ने महंगाई की आग को ठंडा करने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरियां कीं, जिससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआइ) पंख लगाकर भारत से फुर्र होने को प्रोत्साहित हुए.

इस कैलेंडर वर्ष में इन निवेशकों ने रिकॉर्ड 30.92 अरब डॉलर की भारतीय परिसंपत्तियां बेचीं. सीतारमण ने यह भी सही कहा कि मुद्राएं दुनिया भर में भरभराकर गिर रही हैं. दिसंबर 2021 के बाद तुर्की लीरा 22.34 फीसद मूल्य गंवा बैठी, तो जापानी येन 16.95 फीसद, ब्रिटिश पाउंड 13.66 फीसद, यूरो 11.30 फीसद और थाई बहत 8.75 फीसद गिरा. इसके मुकाबले भारतीय रुपए की छह फीसद गिरावट मामूली जान पड़ती है. मगर वित्त मंत्री बचाव की मुद्रा में दिखीं तो इसलिए कि सत्तारूढ़ भाजपा पहले इस मामले में यूपीए की हुकूमत पर उदारता से तोहमत मढ़ती रही है—खासकर 2013 में जब रुपए का तेज अवमूल्यन हुआ. तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमजोर मुद्रा को कमजोर सरकार के बराबर ठहराया था. अब स्थिति उलट गई है और इसीलिए कांग्रेस नेता शशि थरूर तंज कसते हुए कह पाए कि ''इस मजबूत सरकार ने हमें दिया क्या? और भी कमजोर रुपया!''

गिरते रुपए को लेकर मोदी सरकार चिंतित थी. यह जाहिर हो गया जब रिजर्व बैंक इसे ऊपर उठाने के लिए आक्रामक ढंग से दखल दे रहा था. रुपए की गिरावट थामने के लिए उसने भारत के विशाल विदेशी मुद्रा भंडार से रकम निकालकर रुपया खरीदा. फरवरी से उसने इस काम के लिए 50 अरब डॉलर जितनी बड़ी रकम खर्च की, जिससे मुद्रा भंडार 630 अरब आर्थिक कैलेंडर विदेशी मुद्रा डॉलर से घटकर 580 अरब डॉलर पर आ गया. अब भी इसे आरामदायक स्थिति माना जाता है. हालांकि हमें विदेशी मुद्रा भंडार बड़ा होने के मुगालते में नहीं रहना चाहिए क्योंकि उसका एक बड़ा हिस्सा उड़नछू किस्म का है जो एक चुटकी में निकाला जा सकता है. हमें ऐसे विदेशी मुद्रा भंडार की जरूरत है जो निर्यात से कमाया गया हो और टिके. सियासी तौर पर रुपए का गिरना गद्दीनशीन निजाम के लिए अच्छी खबर नहीं है क्योंकि यह सरकार के खातों और कारोबारी योजनाओं में उथल-पुथल मचा रहा है और आम आदमी के लिए मुसीबतें पैदा कर रहा है.

इस हफ्ते की आवरण कथा लिखते हुए डिप्टी एडिटर श्वेता पुंज ने पाया कि असल कहानी वह है जिसे विशेषज्ञ 'आयातित मुद्रास्फीति' कहते हैं. गिरते रुपए का सरकार की माली हालत पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है. भारत कुल मिलाकर आयातक देश है—उसके तेल आयात का बिल पहले ही 2021-22 के 62.2 अरब डॉलर से दोगुना बढ़कर इस साल 119.2 अरब डॉलर हो चुका है. सरकार को यह तकलीफदेह बोझ या तो उपभोक्ता पर डालकर और ज्यादा जनाक्रोश का जोखिम उठाना होगा या इसे खुद उठाकर अपनी बैलेंस शीट के दूसरे हिस्सों में इसके असर झेलने होंगे. फिर उर्वरकों पर दी जा रही सब्सिडी भी है. इस साल के बजट में 1.10 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त सहायता दी गई, जिससे कुल सब्सिडी इस वित्तीय साल 2.15 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गई.

उद्योगों के मोर्चे पर असर मिला-जुला है. ज्यादातर व्यवसायों के लोग बढ़ते आयात बिल और कर्ज चुकाने की ज्यादा ऊंची लागत को लेकर परेशान हैं. क्रिसिल के 300 से ज्यादा फर्मों के विश्लेषण से पता चला कि उनकी मुनाफे की क्षमता जून में खत्म होने वाली तिमाही में पिछले साल के मुकाबले 200-300 फीसद आधार अंक घटी. पर निर्यातकों, खासकर उनके लिए जो घरेलू कच्चे माल का इस्तेमाल करते हैं, यह खुशी आर्थिक कैलेंडर विदेशी मुद्रा से झूमने का वक्त हो सकता है. आइटी सेक्टर, टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग, फार्मास्युटिकल और ऑटो कलपुर्जों के निर्माता बढ़त का रुझान देख रहे हैं.

कई विशेषज्ञों का मानना है कि रिजर्व को अस्थिरता के प्रबंधन पर अडिग रहकर बाजार की ताकतों को रुपए का सही मूल्य तय करने देना चाहिए. दूसरों को लगता है कि कमजोर पड़ता रुपया भारत की अक्षमताओं का प्रतीक है. ईवाइ इंडिया के पॉलिसी एडवाइजर डी.के. श्रीवास्तव मानते हैं कि भारत को अपनी उत्पादकता और क्षमताएं बढ़ाने पर काम करना चाहिए. वे कहते हैं, ''महज विनिमय मूल्य के बजाए मुद्रा का परिसंपत्ति मूल्य होना चाहिए.'' इसमें शक नहीं कि भारतीय उद्योग को ज्यादा प्रतिस्पर्धी होना होगा और निर्यात करना होगा. 2021 में हमारा प्रति कामगार उत्पादन चीन के 16,697 डॉलर के मुकाबले महज करीब 6,413 डॉलर था. बहुत कुछ सरकार की कारोबार के अनुकूल नीतियों और हमारे बुनियादी ढांचे में सुधार पर निर्भर करता है. सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि आयात पर निर्भरता कम करने के लिए हम आत्मनिर्भरता की राह पर आक्रामक ढंग से चलें. गिरता रुपया सरकार के लिए आर्थिक सुधारों की रफ्तार बढ़ाने की खातिर अलार्म बेल होना चाहिए.

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