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विदेशी निवेश की सीमाएं व दोष - Limitations and demerits of foreign investment

विदेशी निवेश की सीमाएं व दोष - Limitations and demerits of foreign investment

(i) मेजबान देशों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश / विदेशी निवेश की सीमाएं या दोष -

(1) प्रतिस्पर्धा पर कुप्रभाव-विकासशील देशों व अल्पविकसित देशों में स्थापित विदेशी कंपनियां मेजबान देश की घरेलू औद्योगिक इकाइयों को कुप्रभावित करती है। ये घरेलू इकाइयां विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों की उच्च टेक्नोलॉजी, प्रबंधकीय श्रेष्ठता, विश्व व्यापी ब्रांड छवि सूदृढ वित्तीय आधार से प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर पाती। इसके अलावा विकासशील व अल्पविकसित देशों के लोग विदेशी ब्रांडों को खरीदना बड़े गर्व की बात मानते हैं। इससे घरेलू इकाइयों को हानि होती है। कई बार बहुराष्ट्रीय कंपनिया मेजबान देश की घरेलू कंपनियों को अधिग्रहण करके मेजबान देश में एकाधिकार वाली स्थिति उत्पन्न करके प्रतिस्पर्धा को बहुत कम कर देती है, जैसे- भारत में हिदुस्तान यूनीलीवर (जो विदेशी कंपनी यूनीलीवर की सहायक कंपनी है) ने बहुत सी भारतीय घरेलू कंपनियों का अधिग्रहण कर लिया है।

(2) विदेशों पर निर्भरता में वृद्धि - विदेशी निवेश के कारण विदेशों पर निर्भरता में वृद्धि होती है। विदेशों से जो मशीनें, कच्चा माल, तकनीक आदि आयात की जाती है। उनके कल पूर्जो, टेक्नीशियन्स आदि के लिए उन्हीं देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। अर्थात विदेशी तकनीक के रख-रखाव के लिए भी हमें विदेशों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

(3) विदेशी विनिमय का बाहरी प्रवाह:- मूल देश में स्थापित सहायक कंपनी को रॉयल्टी तकनीकी फीस, लाभ, पूंजी पर ब्याज आदि के रूप में मूल कंपनी को भुगतान विदेशी मुद्रा में करना पडता है दीर्घकाल में यह भुगतान निवेश की गई पूजी से कहीं अधिक होता है इससे मेजबान देश में विदेशी विनिमय का बाहरी प्रवाह बढ़ जाता है। इसके अलावा मेजबान देश को मूल देश से पूजी उत्पादों व मध्यवर्ती उत्पादों का भी आयात करना पडता है, क्योंकि घरेलू पूंजी उत्पाद व मध्यवर्ती उत्पाद विदेशी टेक्नोलॉजी से मेल नहीं खाते। इससे भी विदेशी विनिमय के बाहरी प्रवाह में वृद्धि होती है।

(4) आंतरिक वितीय साधनों का अपर्याप्त विकास- विदेशी पूंजी का आंतरिक वित्तीय साधनों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भारत में नियोजन के प्रारंभिक काल में आंतरिक बचतों की दर बहुत कम रही। इसका कारण विदेशी सहायता का उपलब्ध होना था। देश में आंतरिक बचत बढ़ाने के पूर्ण प्रयास नहीं किए गए क्योंकि जरूरत पड़ने पर विदेशी पूंजी का ही प्रयोग किया जाता है।

(5) अनिश्चितता:- विदेशी निवेश के संबंध में सदैव अनिश्चितता बनी रही है। यह कभी भी विदेशों को वापिस जा सकती है। विदेशी पूंजी कभी भी किसी अर्थव्यवस्था का स्थायी अंग नहीं बन सकती। आपत्तिकाल में जब विदेशी पूंजी की सबसे अधिक आवश्यकता होती हैं, इसकी उपलब्धता बहुत कम जाती है।

वैश्विक वित्तीय संकट की दशा में विदेशी संस्थागत निवेशक पोर्टफोलियों निवेश को वापस ले जाते हैं। इससे घरेलू अर्थव्यवस्था में पूंजी की कमी हो जाती है, शेयरों की कीमतों में गिरावट आ जाती हैं, जिससे शेयर बाजार संकट आ जाता है। इसके अलावा इससे घरेलू करेंसी के बाहरी मूल्य मे कमी आ जाती है, क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशक अपनी पूजी को अपने मूल देश में वापस ले जाते है, जिससे विदेशी मुद्रा की माग बढ़ जाती है। वर्ष 2008-09 में ऐसी स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था में तथा विश्व की अधिकतर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में आई इस तरह पोर्टफोलियो निवेश केवल अच्छे समय का साथी है तथा बहुत अनिश्चित है।

(6) घरेलू उत्पादकों के लिए हानिकारक:- विदेशी पूंजी के द्वारा स्थापित उद्योगों के कारण घरेलू उत्पादकों को हानि उठानी पड़ सकती है

ये विदेशी उद्यमों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते। उनके लाभों में कमी होती है। इसका उनके विकास पर प्रतिकूल पड़ता है। कई बार उन्हें उत्पादन ही बंद करना पड़ता है।

(7) असंतुलित विकासः - विभिन्न देशों में विदेशी पूंजी का निवेश उन्हीं उद्योगों में किया गया है जिनमें लाभ की मात्रा अधिक है। इसके फलस्वरूप मेजबान देशों में आवश्यक तथा आधारभूत उद्योगों का उचित विकास नहीं हो पाया है। परिणामस्वरूप मेजबान देशों का औद्योगिक विकास संतुलित ढंग से नहीं हो पाया।

(8) घरेलू तकनीक के विकास में बाधा:-विदेशी पूंजी के साथ-साथ विदेशी तकनीक भी आयात की जाती है। इसका घरेलू तकनीक तथा अनुसंधानों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जब हम कोई तकनीक विदेशों से आयात कर लेते हैं तो उस तकनीक का घरेलू उत्पादन, अनुसंधान व विकास छोड़ देते हैं। इससे स्वदेशी आधुनिक तकनीक का विकास नहीं हो पाता। इससे मेजबान देशों के उद्योग विदेशों पर निर्भर हो जाते हैं।

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था

भारत जीडीपी विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद के संदर्भ में वि‍श्‍व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है । यह अपने भौगोलि‍क आकार के संदर्भ में वि‍श्‍व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्‍या की दृष्‍टि‍ से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधि‍त मुद्दों के बावजूद वि‍श्‍व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्‍वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्‍त करने की दृष्‍टि‍ से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्‍मूलन और रोजगार उत्‍पन्‍न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।

इति‍हास

ऐति‍हासि‍क रूप से भारत एक बहुत वि‍कसि‍त आर्थिक व्‍यवस्‍था थी जि‍सके वि‍श्‍व के अन्‍य भागों के साथ मजबूत व्‍यापारि‍क संबंध थे । औपनि‍वेशि‍क युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रि‍टि‍श भारत से सस्‍ती दरों पर कच्‍ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्‍य मूल्‍य से कहीं अधि‍क उच्‍चतर कीमत पर बेचा जाता था जि‍सके परि‍णामस्‍वरूप स्रोतों का द्धि‍मार्गी ह्रास होता था । इस अवधि‍ के दौरान विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद वि‍श्‍व की आय में भारत का हि‍स्‍सा 1700 ए डी के 22.3 प्रति‍शत से गि‍रकर 1952 में 3.8 प्रति‍शत रह गया । 1947 में भारत के स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद अर्थव्‍यवस्‍था की पुननि‍र्माण प्रक्रि‍या प्रारंभ हुई । इस उद्देश्‍य से वि‍भि‍न्‍न नीति‍यॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्‍यम से कार्यान्‍वि‍त की गयी ।

1991 में भारत सरकार ने महत्‍वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्‍तुत कि‍ए जो इस दृष्‍टि‍ से वृहद प्रयास थे जि‍नमें वि‍देश व्‍यापार उदारीकरण, वि‍त्तीय उदारीकरण, कर सुधार और वि‍देशी नि‍वेश के प्रति‍ आग्रह शामि‍ल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को गति‍ देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बहुत आगे नि‍कल आई है । सकल स्‍वदेशी उत्‍पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्‍टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रति‍शत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रति‍शत के रूप में बढ़ गयी ।

कृषि‍

कृषि‍ भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ है जो न केवल इसलि‍ए कि‍ इससे देश की अधि‍कांश जनसंख्‍या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्‍कि‍ इसलि‍ए भी भारत की आधी से भी अधि‍क आबादी प्रत्‍यक्ष रूप से जीवि‍का के लि‍ए कृषि‍ पर नि‍र्भर है ।

वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपायों के द्वारा कृषि‍ उत्‍पादन और उत्‍पादकता में वृद्धि‍ हुई, जि‍सके फलस्‍वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्‍त हुई । कृषि‍ में वृद्धि‍ ने अन्‍य क्षेत्रों में भी अधि‍कतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जि‍सके फलस्‍वरूप सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में और अधि‍कांश जनसंख्‍या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मि‍लि‍यन टन का एक रि‍कार्ड खाद्य उत्‍पादन हुआ, जि‍समें सर्वकालीन उच्‍चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्‍पादन हुआ । कृषि‍ क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रति‍शत प्रदान करता है ।

उद्योग

औद्योगि‍क क्षेत्र भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लि‍ए महत्‍वपूर्ण है जोकि‍ विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद वि‍भि‍न्‍न सामाजि‍क, आर्थिक उद्देश्‍यों की पूर्ति के लि‍ए आवश्‍यक है जैसे कि‍ ऋण के बोझ को कम करना, वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्‍मनि‍र्भर वि‍तरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परि‍दृय को वैवि‍ध्‍यपूर्ण और आधुनि‍क बनाना, क्षेत्रीय वि‍कास का संर्वद्धन, गरीबी उन्‍मूलन, लोगों के जीवन स्‍तर को उठाना आदि‍ हैं ।

स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात भारत सरकार देश में औद्योगि‍कीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्‍टि‍ से वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपाय करती रही है । इस दि‍शा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगि‍क नीति‍ संकल्‍प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारि‍त हुआ और विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारि‍त हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रति‍बंधों को हटाना, पहले सार्वजनि‍क क्षेत्रों के लि‍ए आरक्षि‍त, नि‍जी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनि‍श्‍चि‍त मुद्रा वि‍नि‍मय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि‍ के द्वारा महत्‍वपूर्ण नीति‍गत परि‍वर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्‍यधि‍क अपेक्षि‍त तीव्रता प्रदान की ।

आज औद्योगि‍क क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रति‍शत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रति‍शत अंशदान करता है ।

सेवाऍं

आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि‍ आधरि‍त अर्थव्‍यवस्‍था से ज्ञान आधारि‍त अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में परि‍वर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रति‍शत ( 1991-92 के 44 प्रति‍शत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक ति‍हाई है और भारत के कुल नि‍र्यातों का एक ति‍हाई है

भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्‍लेखनीय वैश्‍वि‍क ब्रांड पहचान प्राप्‍त विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद की है जि‍सके लि‍ए नि‍म्‍नतर लागत, कुशल, शि‍क्षि‍त और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्‍ति‍ के एक बड़े पुल की उपलब्‍धता को श्रेय दि‍या जाना चाहि‍ए । अन्‍य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्‍यवसाय प्रोसि‍स आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परि‍वहन, कई व्‍यावसायि‍क सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधि‍त सेवाऍं और वि‍त्तीय सेवाऍं शामि‍ल हैं।

बाहय क्षेत्र

1991 से पहले भारत सरकार ने वि‍देश व्‍यापार और वि‍देशी नि‍वेशों पर प्रति‍बंधों के माध्‍यम से वैश्‍वि‍क प्रति‍योगि‍ता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति‍ अपनाई थी ।

उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परि‍वर्तित हो गया । वि‍देश व्‍यापार उदार और टैरि‍फ एतर बनाया गया । वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश सहि‍त वि‍देशी संस्‍थागत नि‍वेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लि‍ए जा रहे हैं । वि‍त्‍तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्‍य अन्‍य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्‍ति‍यों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।

आज भारत में 20 बि‍लि‍यन अमरीकी डालर (2010 - 11) का वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश हो रहा है । देश की वि‍देशी मुद्रा आरक्षि‍त (फारेक्‍स) 28 अक्‍टूबर, 2011 को 320 बि‍लि‍यन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बि‍लि‍यन अ.डालर की तुलना में )

भारत माल के सर्वोच्‍च 20 नि‍र्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्‍च 10 सेवा नि‍र्यातकों में से एक है ।

India के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार, लोन का दबाव बर्दाश्त करने में सक्षमः एसएंडपी

India के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार, लोन का दबाव बर्दाश्त करने में सक्षमः एसएंडपी India has enough forex reserves able to bear credit pressure S&P

India TV Paisa Desk

Edited By: India TV Paisa Desk
Published on: August 25, 2022 15:49 IST

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Highlights

  • रेटिंग एजेंसी को नहीं लगता है कि भारत की साख पर गंभीर असर पड़ेगा
  • चालू वित्त वर्ष में जीडीपी में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद
  • रुपये का प्रदर्शन अन्य उभरते बाजारों की तुलना में बेहतर

India के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, जिससे देश ऋण संबंधी दबाव बर्दाश्त करने में सक्षम है। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने बृहस्पतिवार को यह बात कही। एसएंडपी सॉवरेन एंड इंटरनेशनल पब्लिक फाइनेंस रेटिंग्स के निदेशक एंड्रयू वुड ने वेबगोष्ठी - इंडिया क्रेडिट स्पॉटलाइट-2022 में कहा कि देश का बाह्य बही-खाता मजबूत है और विदेशी कर्ज सीमित है। इसलिए कर्ज चुकाना बहुत अधिक महंगा नहीं है। वुड ने कहा, ‘‘हम आज जिन चक्रीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, देश ने उनके खिलाफ बफर का निर्माण किया है।’’

भारत की साख पर गंभीर असर नहीं

उन्होंने कहा कि रेटिंग एजेंसी को नहीं लगता है कि निकट अवधि के दबावों का भारत की साख पर गंभीर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘हम चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं।’’ उन्होंने साथ ही जोड़ा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर की गति मध्यम रही है। इस साल अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपये में लगभग सात प्रतिशत की गिरावट आई है, हालांकि रुपये का प्रदर्शन अन्य उभरते बाजारों की तुलना में बेहतर रहा है।

पाकिस्तान की रेटिंग घटाकर ‘नकारात्मक’ की थी

रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल ने पाकिस्तान की दीर्घकालिक रेटिंग को ‘स्थिर’ से घटाकर ‘नकारात्मक’ कर दिया था। नकदी की कमी से जूझ रहा यह देश भारी महंगाई, रुपये की कीमत में गिरावट और सख्त वैश्विक वित्तीय दशाओं से जूझ रहा है। न्यूयॉर्क स्थित एजेंसी ने पाकिस्तान पर अपनी रेटिंग लंबी अवधि के लिए ‘बी ऋणात्मक’ और छोटी अवधि के लिए ‘बी’ तय की थी। एजेंसी ने एक बयान में कहा, ‘‘वस्तुओं की ऊंची कीमतों, सख्त वैश्विक वित्तीय दशाओं और कमजोर रुपये के चलते पाकिस्तान की वाह्य स्थिति कमजोर हुई है।’’ एजेंसी ने कहा कि अगर पाकिस्तान के बाह्य संकेतकों में गिरावट जारी रहती है, तो वह अपनी रेटिंग कम कर सकता है, लेकिन अगर इसकी बाह्य स्थिति स्थिर हो जाती है और इसमें सुधार होता है तो इसे स्थिर के रूप में संशोधित किया जा सकता है। नकारात्मक दृष्टिकोण अगले 12 महीनों के दौरान बाह्य क्षेत्र में पाकिस्तान की नकदी स्थिति के बढ़ते जोखिमों को दर्शाता है।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के बावजूद भारत मजबूत, किसी भी बाहरी झटके से निपटने में सक्षम: Fitch Ratings

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस साल के नौ महीनों में करीब 100 अरब डॉलर तक घट चुका है। हालांकि इसके बावजूद Fitch Ratings का मानना है कि बाहरी दबावों से निपटने के लिए भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस साल के नौ महीनों में करीब 100 अरब डॉलर तक घट चुका है। हालांकि इसके बावजूद वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) का मानना है कि अमेरिका की सख्त मौद्रिक नीतियों और वैश्विक स्तर महंगाई दर बढ़ने के रिस्क से निपटने के लिए भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है।

वैश्विक रेटिंग एजेंसी के मुताबिक बाहरी दबावों से भारत की क्रेडिट को जो रिस्क है, वह सीमित ही है। फिच रेटिंग्स ने 19 अक्टूबर को ये बातें कहीं। फिच की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब रुपये की गिरावट को थामने के लिए आरबीआई ने हस्तक्षेप किया था जिसके चलते विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई।

विदेशी मुद्रा: अब निवेश करने का समय है।

अब विदेशी मुद्रा कोष में निवेश करने का सबसे अच्छा समय है। क्योंकि बाजार अत्यधिक हैं सहसंबद्ध, विविध निवेश पोर्टफोलियो तैयार करना कभी भी अधिक महत्वपूर्ण या चुनौतीपूर्ण नहीं रहा है। एक अच्छी तरह से प्रबंधित विदेशी मुद्रा कोष या प्रबंधित मुद्रा खाते में निवेश करने से वैश्विक इक्विटी और बांड विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद बाजारों में प्रतिकूल चालों की भरपाई हो सकती है। इसके अलावा, प्रबंधित विदेशी मुद्रा उत्पाद महत्वपूर्ण प्रतिफल प्रदान कर सकते हैं जब अन्य बाजार निम्न स्तर से गुजर रहे हों अस्थिरता अवधि। जबकि अस्थिरता जोखिम ला सकती है, यह महत्वपूर्ण पुरस्कारों को भी अनलॉक कर सकती है।

विदेशी मुद्रा क्यों? मैं पहले से ही खुद को जानने के लिए जानता हूं

विदेशी मुद्रा कोष खाता ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म प्रबंधित करता है।

विदेशी मुद्रा कोष खाता ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म प्रबंधित करता है।

बस के रूप में एक अच्छी तरह से विविध पोर्टफोलियो विभिन्न होल्डिंग्स, रणनीतियों, परिसंपत्ति वर्गों और विभिन्न प्रकार के निवेश और उपकरणों के होते हैं, इसलिए एक विदेशी मुद्रा पोर्टफोलियो होना चाहिए।

महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा फंड पोर्टफोलियो वाले व्यापारियों के पास कई खाते हो सकते हैं, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, एक विविध संरचना के साथ, स्व-व्यापार और स्वचालित ट्रेडिंग रोबोट या सिग्नल चलाने के अलावा।

प्रबंधित विदेशी मुद्रा खातों का आम तौर पर मतलब है कि एक निवेशक एक धन प्रबंधक को निवेशक के विदेशी मुद्रा खाते में व्यापार करने की अनुमति देता है, निवेशक के नाम पर और अधिमानतः एक विनियमित ब्रोकरेज पर। ट्रेडिंग प्राधिकरण एक सीमित पावर ऑफ अटॉर्नी (पीओए) पर दिया जाता है, जो फंड मैनेजर द्वारा केवल ट्रेडिंग (निकासी या जमा नहीं) की अनुमति देता है जब तक कि इस तरह के प्राधिकरण को रद्द नहीं किया जाता है या निवेशक फंड वापस नहीं लेता है।

निवेशक प्रदर्शन में निरंतरता चाहते हैं। अनुमानित प्रदर्शन विदेशी मुद्रा निधि प्रबंधक के ट्रैक रिकॉर्ड की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है। मान लीजिए कि एक मुद्रा व्यापारी का ट्रैक रिकॉर्ड ऐतिहासिक प्रदर्शन से विचलित होता है। उस स्थिति में, निवेशक चिंतित हो सकते हैं कि व्यापारी की कार्यप्रणाली बदल गई है या अब काम नहीं कर रही है, जो निवेशकों को अपने सभी फंड या कुछ हिस्से को भुनाने के लिए प्रेरित कर सकती है। अनुभवी विदेशी मुद्रा निवेशक समझते हैं कि कई वर्षों तक लगातार रिटर्न के साथ एक लंबा ट्रैक रिकॉर्ड सुसंगत और लाभदायक भविष्य के परिणामों का कोई आश्वासन नहीं है; नतीजतन, निवेशकों को हमेशा अपने व्यापारियों के प्रदर्शन का पालन करना चाहिए और इसकी तुलना ऐतिहासिक परिणामों से करनी चाहिए। रीयल-टाइम रिटर्न के मुकाबले ऐतिहासिक प्रदर्शन की समीक्षा करना प्रत्येक निवेशक के समग्र का हिस्सा होना चाहिए खोजी परिश्रम प्रक्रिया.

बनाने के निर्णय आसान

कई अन्य विभेदक कारक हैं, दोनों मात्रात्मक और गुणात्मक, जो एक निवेशक के लिए यह जांच करने के लिए प्रासंगिक होंगे कि कौन विदेशी मुद्रा-प्रबंधित खाता खोल रहा है या हेज फंड में निवेश कर रहा है जो मुद्राओं का व्यापार करता है।

निवेशक एक बड़ा विदेशी मुद्रा पोर्टफोलियो बनाकर या एक बहु-परिसंपत्ति पोर्टफोलियो विकसित करके विविधता ला सकता है जहां विदेशी मुद्रा फंड निवेशक के विदेशी मुद्रा जोखिम में से एक के रूप में काम करेगा। प्रबंधित विदेशी मुद्रा एक निवेशक की संपूर्ण नकदी होल्डिंग्स का माध्यम नहीं होना चाहिए। डॉलर की राशि या प्रबंधन के तहत संपत्ति (एयूएम) में कितना फंड है, इस पर ध्यान दिए बिना यह सच होना चाहिए। इसके बजाय, इसे लाभ/जोखिम क्षमता पर विचार करते हुए विविधता लाने के लिए एक निवेशक द्वारा आवंटित होल्डिंग्स के प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करना चाहिए।

खाता खोलने और एक विदेशी मुद्रा खाता खोलने के लिए। आगे क्या होगा? मुझे निवेश से क्या फायदा होगा?

विनियमित क्षेत्राधिकार में सक्रिय अधिकांश प्रौद्योगिकी-संचालित ऑनलाइन विदेशी मुद्रा दलाल पेशेवर एफएक्स फंड प्रबंधकों और उनके ग्राहकों के लिए मंच और बैक-ऑफिस सेवाएं प्रदान करते हैं। हालांकि, सभी ब्रोकरेज में सभी मुद्रा फंड उपलब्ध नहीं हैं। यह एक काल्पनिक उदाहरण है: एबीसी फॉरेक्स फंड केवल बिग फॉरेक्स ब्रोकर के माध्यम से अपने ट्रेडों को साफ कर सकता है, लेकिन सर्वश्रेष्ठ विदेशी मुद्रा ब्रोकर के माध्यम से नहीं; परिणामस्वरूप, एबीसी फॉरेक्स फंड के साथ खाता स्थापित करने के इच्छुक ग्राहक को फंड मैनेजर तक पहुंचने के लिए बिग फॉरेक्स ब्रोकर के साथ एक खाता खोलना होगा।

एक बार जब विदेशी मुद्रा दलाल चुना जाता है, तो खाता खोला और वित्त पोषित किया जाएगा। इसके बाद द प्रकटीकरण दस्तावेज़ निवेशक द्वारा समीक्षा और हस्ताक्षर किए जाएंगे। खाते को व्यापार करने के लिए विदेशी मुद्रा व्यापार प्रबंधक प्राधिकरण को देने के लिए निवेशक द्वारा सीमित पावर ऑफ अटॉर्नी (LPOA) पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होगी। निवेशक को अब वास्तविक समय के लाभ और हानि के बयानों और सभी दिनों की रिपोर्टों तक पहुंच होनी चाहिए।

निवेश करने के बाद विदेशी मुद्रा कोष का अनुसरण करना।

RSI फंड के लिए निवेश क्षितिज इसमें दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या वार्षिक लक्ष्य शामिल हो सकते हैं। तदनुसार, फंड के प्रदर्शन की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि प्रदर्शन निवेशक की प्रारंभिक अपेक्षाओं के अनुरूप है या नहीं। यह निवेशकों के लिए यह बताने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया तंत्र है कि क्या निवेश प्रारंभिक अपेक्षाओं के अनुरूप है।

यदि फंड का प्रदर्शन अपने वास्तविक या काल्पनिक ऐतिहासिक ट्रैक रिकॉर्ड के साथ तालमेल नहीं रख रहा है, तो निवेशक को फंड मैनेजर से संपर्क करके पूछना चाहिए कि प्रदर्शन में बदलाव क्यों हुआ है। ऐतिहासिक रिटर्न के वर्तमान रिटर्न से मेल नहीं खाने के संभावित कारणों में बाजार में बढ़ी हुई अस्थिरता या एक अप्रत्याशित भू-राजनीतिक घटना शामिल है। यदि निवेशक प्रदर्शन के संबंध में फंड मैनेजर के स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है, तो निवेशक को अपने निवेश को कम करने या अपने निवेश को पूरी तरह से विदेशी मुद्रा फंड से निकालने पर विचार करना चाहिए।

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