प्रियंका सौरभ का लेख : किसानों के नाम पर राजनीति
आखिर इनका विरोध क्यों किया जा रहा है? क्या नए प्रावधान सभी राज्य एपीएमसी (APMC) कानूनों को समाप्त कर देंगे? चूंकि कृषि और बाजार राज्य के विषय हैं। इसीलिए इन विधेयकों को राज्यों के कार्यों पर प्रत्यक्ष अतिक्रमण और संघवाद की भावना के खिलाफ देखा जा रहा है।
हाल ही में कृषि सुधारों पर बिल किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य विधेयक, 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक, 2020 और किसान सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता, आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020 को संसद में पास कर दिया गया।
इस दौरान लोकसभा में विपक्षी सदस्यों ने व्यापार (business) और वाणिज्य अध्यादेश और मूल्य आश्वासन अध्यादेश के खिलाफ एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। यही नहीं इन अध्यादेशों के खिलाफ देश भर के किसान और किसान संगठनों ने विरोध किया। बीते जुलाई (July) में पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा ट्रैक्टर विरोध किया था। पंजाब विस ने 28 अगस्त को अध्यादेशों को खारिज करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
आखिर इनका विरोध क्यों किया जा रहा है? क्या नए प्रावधान सभी राज्य एपीएमसी कानूनों को समाप्त कर देंगे? चूंकि कृषि और बाजार राज्य के विषय हैं। इसीलिए इन विधेयकों को राज्यों के कार्यों पर प्रत्यक्ष अतिक्रमण और संघवाद की भावना के खिलाफ देखा जा रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि खाद्य पदार्थों में व्यापार और वाणिज्य समवर्ती सूची का हिस्सा है, इस प्रकार यह संवैधानिक है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार एपीएम्ासी किसानों की उपज की प्रभावी खोज के लिए खरीदारों और विक्रेताओं के बीच उचित व्यापार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्थापित किए गए थे।
एपीएमसी खरीदारों, कमीशन एजेंटों और निजी बाजारों को लाइसेंस प्रदान करके किसानों की उपज के व्यापार को विनियमित कर सकता है। इस तरह के व्यापार पर लेवी बाजार शुल्क या कोई अन्य शुल्क और व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए अपने बाजारों के भीतर आवश्यक बुनियादी ढांचा प्रदान करते हैं। दूसरा विधेयक किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश का उद्देश्य किसानों के लिए अधिसूचित कृषि उपज बाजार समिति मंडियों के बाहर कृषि बिक्री और विपणन खोलना है, जो अंतर-राज्य व्यापार के लिए बाधाओं को दूर करता है और कृषि उपज को इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग के लिए ढांचा प्रदान करता है। यह राज्य सरकारों को एपीएमसी बाजारों के बाहर व्यापार शुल्क, उपकर या लेवी एकत्र करने से भी रोकता है।
दूसरी तरफ आलोचक एपीएमसी के एकाधिकार के विघटन को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न की सुनिश्चित खरीद को समाप्त करने के सीधे संकेत के रूप में देखते हैं। केंद्र के एक राष्ट्र, एक बाजार के जवाब में आलोचकों ने एक राष्ट्र, एक एमएसपी मांगा है। आलोचकों का तर्क है कि बड़ी संख्या में किसानों को उनकी उपज के लिए एमएसपी प्राप्त करना समय की आवश्यकता है।
देश भर में किसानों के विरोध के बीच सरकार ने गेहूं एमएसपी के लिए 2.6 प्रतिशत बढ़ोतरी की घोषणा की। मंत्रिमंडल ने छह फसलों के लिए एमएसपी बढ़ोतरी को मंजूरी दी है, जिसमें गेहूं के लिए दर में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि शामिल है। पिछले साल गेहूं के लिए एमएसपी में 4.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी।
लिखित कृषि समझौता, किसी भी कृषि उपज के उत्पादन या पालन से पहले दर्ज किया गया, आपूर्ति और गुणवत्ता, ग्रेड, मानकों और कृषि उपज और सेवाओं की कीमत के लिए नियमों और शर्तों को सूचीबद्ध करता है। विविधताओं के अधीन कीमतों के मामले में, समझौते में ऐसी उपज के लिए भुगतान की जाने वाली गारंटीकृत कीमत शामिल होनी चाहिए, इस तरह की कीमत अनुबंध के रूप में प्रदान की जाएगी।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग देश के किसानों के लिए एक नई अवधारणा नहीं है। अन्न, अनाज और पोल्ट्री क्षेत्रों में औपचारिक अनुबंधों के लिए अनौपचारिक अनुबंध आम हैं। ऐसी आशंका है कि कॉरपोरेट घरानों को दिए जाने वाले फ्री हैंड से किसान का शोषण हो सकता है।
तीसरा विधेयक आवश्यक वस्तु अध्यादेश अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा देता है। संशोधन इन खाद्य वस्तुओं के उत्पादन, भंडारण, संचलन और वितरण को निष्क्रिय कर देगा। केंद्र सरकार को युद्ध, अकाल के दौरान अतिरिक्त आपूर्ति के विनियमन की अनुमति है जबकि ऐसे समय में निर्यातकों और प्रोसेसर के लिए छूट प्रदान करते हैं।
आलोचकों का अनुमान है कि खाद्य पदार्थों के नियमन में ढील निर्यातकों, प्रोसेसर और व्यापारियों को फसल के मौसम के दौरान फसल उत्पादन के लिए ले जाएगा, जब कीमतें आम तौर पर कम होती हैं और कीमतें बढ़ने पर बाद में इसे जारी करती हैं। उनका कहना है कि यह खाद्य सुरक्षा को कमजोर कर सकता है क्योंकि राज्यों को राज्य के भीतर स्टॉक की उपलब्धता के कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति बारे में कोई जानकारी नहीं होगी।
आलोचकों ने आवश्यक कीमतों और बढ़े हुए कालाबाजारी के मूल्यों में अतार्किक अस्थिरता का अनुमान लगाया। देखें तो बिलों की आवश्यकता है कि कृषि उपज पर किसी भी स्टॉक सीमा को लागू करना मूल्य वृद्धि पर आधारित होना चाहिए। नए बिलों में कृषि विपणन को उदार बनाने का तरीका किसान के लिए अधिक सुलभ बाजार और विकल्प तैयार करना है। हमें एमएसपी और सार्वजनिक खरीद के माध्यम से सेफ्टी नेट सिद्धांत को संरक्षित करते हुए कृषि उपज के लिए बाजार में विस्तार करने की आवश्यकता है।
भारत के पास है गेहूं का पर्याप्त स्टॉक, खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा, जरूरत पड़ने पर जमाखोरों के खिलाफ कार्रवाई करेगी सरकार
Wheat Stock: केंद्र व्यापारियों की तरफ से गेहूं के स्टॉक का खुलासा करने और घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए स्टॉक लिमिट लगाने, जैसे कदमों पर विचार कर सकता है
सरकार ने सोमवार को कहा कि देश में गेहूं का पर्याप्त भंडार (कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति wheat stock) है और अगर जरूरत पड़ी, तो वह घरेलू सप्लाई बढ़ाने के लिए जमाखोरों (Horders) के खिलाफ कार्रवाई करेगी। केंद्र व्यापारियों की तरफ से गेहूं के स्टॉक का खुलासा करने और घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए स्टॉक लिमिट लगाने, जैसे कदमों पर विचार कर सकता है।
रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की 82वीं AGM को संबोधित करते हुए खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने कहा कि देश में गेहूं की कोई समस्या नहीं है। केंद्र के पास FCI के गोदामों में 24 मिलियन टन गेहूं है। सचिव ने कहा कि "सट्टा व्यापार" के कारण गेहूं की कीमतें बढ़ी हैं।
पांडे ने कहा कि फसल वर्ष 2021-22 (जुलाई-जून) के रबी सीजन में सरकार का गेहूं प्रोडक्शन लगभग 105 मिलियन टन है। जबकि व्यापार अनुमान 95-98 मिलियन टन है। व्यापार अनुमानों की मानें, तो भी पांडे ने कहा कि घरेलू मांग को पूरा करने के लिए प्रोडक्शन काफी है।
अफगानिस्तान के बाद अब श्रीलंका पर आई नई मुसीबत!
भारतीय मीडिया में आजकल सबसे ज्यादा चर्चा अफगानिस्तान की है। पड़ोसी मुल्क होने के नाते ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन क्या अफगानिस्तान की तुलना में श्रीलंका हमारे ज्यादा करीब नहीं है?
बहुत कम लोगों को पता है कि श्रीलंका में वित्तीय आपातकाल (इकोनॉमिक इमरजेंसी) लगा दि गई है। श्रीलंका, घोर आर्थिक संकट से गुजर रहा है।
क्या इससे चौंकने की जरूरत है?
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था एशियाई देशों में सबसे अच्छी अर्थव्यवस्थाओं में से एक मानी जाती है। श्रीलंका की प्रतिव्यक्ति आय भारत से दोगुनी है। श्रीलंका के सामाजिक संकेतक (social indicators) केरल के बराबर हैं। कई हिस्से तो केरल से भी बेहतर हैं।
2.1 करोड़ की आबादी वाला संपन्न देश अचानक इतने बड़े आर्थिक संकट में कैसे फंस गया? इस सवाल का जवाब आपको चौंका सकता है। हालांकि, उससे पहले यह समझना जरूरी है कि यह आर्थिक संकट कितना गहरा है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले श्रीलंकाई रुपये की कीमत फिलहाल 230 हो गई है। यानी एक डॉलर पाने के लिए 230 श्रीलंकाई रुपये खर्च करने होंगे। आमतौर पर यह 190 से 195 के बीच हुआ करती थी।
श्रीलंका में महंगाई, कालाबाजारी और जमाखोरी अपने चरम पर है। विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से नीचे जा रहा है और यह घटकर 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है। खाने-पीने की चीजों से लेकर अन्य सामान की सप्लाई पर बुरा असर पड़ा है। इस हालात के मद्देनजर श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी है।
सेना को अधिकारी को दी जमाखोरी से निपटने की जिम्मेदारी
राष्ट्रपति ने कालाबाजारी से निपटने के लिए सेना के अधिकारी मेजर जनरल एनडीएसपी निवोनहेला को देश का कंट्रोलर ऑफ सिविल सप्लाई नियुक्त किया है। इनका काम देश के गोदामों और ऐसे ठिकानों पर रेड करना है जहां अवैध तौर पर जमाखोरी हो रही है।
निवोनहेला का काम यह देखना है कि चीनी, चावल, किरॉसिन, खाद्य तेल जैसी आवश्यक चीजों की अवैध जमाखोरी न हो। फिलहाल, श्रीलंका में इन चीजों की सप्लाई या तो रुक गई है या बहुत कम हो गई है। आम इस्तेमाल की इन चीजों में से ज्यादातर का श्रीलंका में आयात किया जाता है।
रुपये की लगातार गिर रही कीमत के चलते इन चीजों का आयात करने वाले व्यापारियों के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया है। यही वजह है कि वे इन चीजों की जमाखोरी करने को मजबूर हैं। आम जनता, महंगाई और लगातार कम हो रही सप्लाई के वजह से इन चीजों की होर्डिंग कर रही है। दुकानों के सामने लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं, जबकि इस दौरान श्रीलंका में कोरोना भी तेजी से फैल रहा है।
आयात पर लगा प्रतिबंध
रुपये की गिरती कीमत और विदेशी मुद्रा भंडार में आ रही कम के चलते श्रीलंका सरकार ने आयात पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। बता दें कि एशियाई देशों में श्रीलंका पहला ऐसा देश था जिसने उदारीकरण को सबसे पहले अपनाया था। यही वजह है कि आर्थिक तौर पर वह एशिया के ज्यादातर देशों से बेहतर स्थिति में रहा है।
निर्यात करने वाले व्यापारी अपने धन को अपने बैंक खाते में जमा नहीं करा सकते। क्योंकि, निर्यात के बदले उन्हें डॉलर में भुगतान मिलता है जिसे श्रीलंका के सेंट्रल बैंक में जमा कराना पड़ रहा है। लोगों से कहा जा रहा है कि वह ईंधन का सोच समझकर इस्तेमाल करें।
क्यों संकट में आई श्रीलंका की अर्थव्यवस्था
1. इस संकट का पहला कारण पर्यटन है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदाना सबसे ज्यादा है। पिछले डेढ़ साल से कोरोना ने दुनिया को अपनी जद में ले रखा है और इसने श्रीलंका के पर्यटन उद्योग को भी प्रभावित किया है।
फिलहाल श्रीलंका में कोरोना अपने चरम पर है। पिछले दो हफ्तों से कोरोना की वजह से रोजाना 200 के करीब मौतें हो रही हैं। 2.1 करोड़ की आबादी में 200 मौतें भयावह हैं। रोजाना करीब 5000 लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं। दिल्ली की आबादी के बराबर वाले देश में रोजाना इतने लोगों का कोरोना से मरना और संक्रमित होना खतरनाक संकेत है। जबकि, श्रीलंका का पब्लिक हेल्थ सिस्टम भारत के केरल राज्य से भी बेहतर है। इस संकट ने श्रीलंका में पर्यटन उद्योग की कमर तोड़ दी है।
2. डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट की वजह से मुद्रास्फीति बढ़ रही है जिससे महंगाई बढ़ रही है। साथ ही जमाखोरी और कालाबाजारी का खतरा बढ़ता जा रहा है।
3. इस आर्थिक संकट के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार श्रीलंका की सरकार है। श्रीलंका सरकार के एक फैसले ने वहां के किसानों की एक झटके में ही कमर तोड़ दी है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने एक दिन अचानक घोषणा कर दी कि देश में अब पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती की जाएगी। कीटनाशक, यूरिया, खाद सब कुछ अचानक बिकना बंद हो गए।
इस फैसले के बाद श्रीलंका में चाय पत्ती की खेती में 50% की गिरावट आई। बता दें कि श्रीलंका के कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति कुल निर्यात में चाय का योगदान 10% है। सिर्फ चाय के निर्यात में कमी से सरकार को 1.25 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
इसके अलावा इलायची, दालचीनी, कालीमिर्च, चावल और सब्जियों का उत्पादन आधे से भी कम हो गया है। दुनिया में दालचीनी के कुल निर्यात में 85% हिस्सा अकेले श्रीलंका का था, जो गिरकर आधा हो चुका है।
हालांकि, इसके बाद भी सरकार अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है। सरकार अभी भी किसानों से यही कह रही है कि जल्द ही उन्हें जैव उर्वरक दिया जाएगा, ताकि वह ऑर्गेनिक खेती जारी रख सकें। सरकारें जब मनमानी पर उतर आती हैं और विज्ञान की जगह विचारधारा से प्रभावित होकर फैसले करने लगती हैं, तो ऐसे ही भयावह नतीजे सामने आते हैं।
कटघोरा के सिद्धिविनायक ट्रेडिंग में तहसीलदार का छापा, 125 क्विंटल शक्कर व 25 क्विंटल गुड़ पकड़ाया
पुलिस में प्राथमिकी दर्ज, ट्रेडिंग कम्पनी हुई सील
कोरबा 30 मार्च 2020/कोरोना वायरस के संक्रमण के नियंत्रण के लिये लागू लाॅकडाउन के दौरान आवष्यक वस्तुओं की आपूर्ति निर्धारित मात्रा में आम लोगों तक सुनिष्चित करने शासन-प्रषासन गम्भीर है। राषन, दवाईयों, सब्जियों आदि अति आवष्यक चीजों की कालाबाजारी और अवैध भण्डारण को रोकने के लिये लगातार कार्यवाही की जा रही है। आज कटघोरा के नवागांव स्थित श्री सिद्धिविनायक ट्रेडिंग कम्पनी में तहसीलदार रोहित सिंह ने अपनी टीम के साथ छापामार कार्यवाही की। इस दौरान उन्होंने कम्पनी में अवैध रूप से भण्डारित 125 क्विंटल शक्कर और 25 क्विंटल गुड़ पकड़ा। कोरोना वायरस के कारण लाॅकडाउन के दौरान अति आवष्यक वस्तुओं का इतनी अधिक मात्रा में अवैध भण्डारण कर कालाबाजारी करने तथा उॅंचे दामों पर बेंचकर मुनाफाखोरी की सम्भावना पर कम्पनी संचालक के विरूद्ध कटघोरा थाने मंे एफआईआर दर्ज कराया गया है। इसके साथ ही तहसीलदार ने ट्रेडिंग कम्पनी को सील कर दिया है। संचालक श्री हिमांषु अग्रवाल के पास इतनी अधिक मात्रा में भण्डारित शक्कर और गुड़ के कोई वैध दस्तावेज, बिल, रसीद आदि नहीं पाये गये हैं। इस कार्यवाही के दौरान कटघोरा नगर पालिका परिषद के मुख्य नगर पालिका अधिकारी श्री जे.बी. सिंह सहित खाद्य अधिकारी, मण्डी प्रभारी एवं स्थानीय पटवारी भी मौजूद रहे।
उर्वरक निगरानी समिति की बैठक में यूरिया की किल्लत का छाया रहा मुद्दा
बगहा ।
प्रखंड बगहा एक सभागार में उर्वरक निगरानी समिति की बैठक हुईं। जिसकी अध्यक्षता प्रखंड कृषि पदाधिकारी कृष्ण नंदन सिंह ने की। बैठक में निगरानी समिति के सदस्यों के द्वारा क्षेत्र में यूरिया की किल्लत व यूरिया की हो रही कालाबाजारी पर प्रश्न खड़ा किया गया। बैठक के दौरान उपस्थित सदस्यों ने यूरिया की किल्लत के कारण किसानों को हो रही परेशानी एवं यूरिया की ऊंची पर हो रही कालाबाजारी पर रोक लगाने को लेकर विभागीय अधिकारियों से जवाब मांगा। प्रखंड कृषि पदाधिकारी कृष्ण सिंह ने बताया कि शीघ्र ही जिला को यूरिया का आवंटन प्राप्त होने वाला है आवंटन प्राप्त होते हैं दुकानों पर यूरिया उपलब्ध है । जिससे किसानों को निर्धारित दर पर यूरिया उपलब्ध होगी । उन्होंने बताया कि यूरिया की कालाबाजारी को रोकने को लेकर कृषि समन्वयक निर्देश दिया गया है कि वे अपने अपने क्षेत्र में लगातार इसकी मॉनिटरिंग करे। ताकि यूरिया की कालाबाजारी पर रोक लगाई जा सकें। उन्होने बताया कि अगर किसी के द्वारा युरिया की कालाबाजारी की जाती हैं तो चिन्हित कर उस पर विभागीय स्तर से कार्रवाई की जाएगी।
उर्वरक निगरानी समिति की बैठक में भाग लेते जनप्रतिनिधियों अधिकारी
उन्होंने कहा कि यूरिया की आपूर्ति प्राप्त होते हैं निगरानी समिति के देखरेख में इसका वितरण निर्धारित दर पर किसानों के बीच कराया जाएगा। बीएओ ने बताया कि सभी खाद दुकानदारों को पीओएस मशीन से खाद वितरण करने का निर्देश दिया गया है । ताकि इसकी कालाबाजारी पर अंकुश लगाया जा सके। उन्होंने बताया कि सभी खा दुकानों पर नैनो यूरिया पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है किसान नाले यूरिया का प्रयोग कर यूरिया की कमी को दूर कर सकते हैं। नैनो यूरिया के प्रयोग को लेकर प्रचार प्रसार करने की भी बात प्रखंड कृषि पदाधिकारी ने कही। इस अवसर पर पंचायत समिति सदस्य पारस बैठा जिला परिषद सदस्य वीरेंद्र राम, सोनू कुमार प्रखंड कृषि पदाधिकारी श्री कृष्णनंदन कुमार सिंह प्रखंड उद्यान पदाधिकारी श्री संजीव कुमार कार्यपालक सहायक मनीष कुमार गुप्ता कृषि समन्वयक श्री नीरज कुमार, श्री महेंद्र कुशवाहा तथा खुदरा उर्वरक विक्रेता उपस्थित थे।
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