बाजार संरचना और डब्लूसीएस की खरीद-बिक्री - Market structure and trading of WCS
बाजार संरचना और डब्लूसीएस की खरीद-बिक्री - Market structure and trading of WCS
ब्रोकन पीरियड इंट्रेस्ट या बढ़ते ब्याज की अवधारणा से आशय बांड पर एक निश्चित अवधि पर होल्डर (बांड धारक) जो कि उस समय बांड का मालिकाना हक भी रखता है, को मिलने वाले ब्याज से है। इस प्रकार अगर कोई निवेशक ऐसा बांड बेचता है जिस पर हर 6 महिने पर अदायगी होती है, प्रतिभूति बाजार संरचना लेकिन ब्याज अदायगी की तिथि के तीन महीने बाद इस स्थित में विक्रेता को उन तीन महीनों का ब्याज नहीं मिलेगा। वह ब्याज खरीदार को मिलेगा यद्यपि उससे तीन पहले ही बांड खरीदा था, वजह यह है कि ब्याज की अदायगी के वक्त वह मालिकाना हक रखता है।
इसलिए बांड के वैसे सौदों के दौरान जो ब्याज अदायगी की दो तिथियों के बीच होता है, क्रेता-विक्रेता को उस अवधि का ब्याज अदा करेगा।
इसकी गणना ब्याज अदायगी की तिथि से सौदे की तिथि के अनुसार होता है। इस प्रकार जब ब्याज की गणना होगी तो उसमें ब्याज अदायगी की तिथि तो शामिल होगी, लेकिन सौदे की तिथि नहीं शामिल होगी।
सरकारी प्रतिभूतियों में लेन-देन के मामले में बढ़ते ब्याज की गणना के लिए प्रतिदिन गणना का तरीका 30/360 है। उदाहरणतः प्रत्येक महीना में 30 दिन लिया जाता है, इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि महीने मे वास्तविक कितने दिन होते है। इसलिए महीना जो भी हो चाहे फरवरी मार्च, जनवरी, मई प्रतिभूति बाजार संरचना जुलाई, अगस्त, अक्टूबर और दिसम्बर, हर महीना 30 दिन का ही लिया जाता है।
सरकारी प्रतिभूतियों का लेन देन स्पष्ट कीमत पर किया जाता है, लेकिन अस्पष्ट कीमत पर निपटारा होता है।
(लेन- देन कीमत + बढ़ते ब्याज) ऐसा तब होता है, जब कुपन पेमेंट पर कीमत में कोई छूट नहीं दी जाती है। जैसा कि दूसरे गैर सरकारी ऋण प्रपत्रों के मामले में होता है।
उत्तर- लेन-देन में प्रतिभूतियों का संचयी अंकित मूल्य लेन देन का अंकित मूल्य है और यह समान्यतः प्रत्येक लेन-देन का पहचाने जाने योग्य विशेषता है।
मान लें की 5,000 सरकारी प्रतिभूतिया जिनका कि पर प्रतिभूति कीमत 100 रुपये है, और कुल 5,00,000 रुपये है, का लेन देन होता है। कीमत
सरकारी प्रतिभूतियों के लेन देन का संचयी कीमत कारोबारी मूल्य है। (उदाहरणत: प्रतिभूतियों में कीमत से गुणा करना।
मान लें उपर दिये गये 5000 सरकारी प्रतिभूतियों के लेन-देन पर प्रतिभूति 102 रुपये किया गया है, ताकि कारोबारी 5.10,000 रुपये हो।
लेन-देन कीमत और बढ़ते व्याज का योग निपटारा कीमत होगा।
बाण्ड इकाइयों के बढ़ते ब्याज का आकलन इस तरह होता है।
= बाण्ड का कूपन X सरकारी प्रतिभूतियों का अंकित मूल्य (100) X (ब्याज भुगतान की तारीख से निपटारे की तारीख से निपटारे की तारीख तक के दिनों की संख्या) / 36
लेन देन की ब्याज भुगतान की तारीख और निपटारे की तारीख में बीच के दिनों की संख्या के आँकलन में सिर्फ
उन दिनों में दो दिनों को समाहित किया जाता है। सरकारी प्रतिभूतियों निम्नलिखित रूपों में रखी जा सकती है:
भौतिक प्रतिभूतियों ( जो कि ज्यादातर चलन से बाहर हो चुका है और ज्यादा उपयोग में नहीं आता है।) भारतीय रिजर्व बैंक में जन ऋण कार्यालय के साथ एस जी एल (सबसिडियरी जेनरल लेजर) खाता।
एस जी एल खाता जबकि कुछ अस्ती जैसे बैंक और संस्था के प्रतिभूति बाजार संरचना लिए प्रतिबन्धित है। वैसे बैंक और पी डी एस की अंगीकृत एस जी एल खाता जो निवेशकों की तरफ से सरकारी प्रतिभूतियों को अपने
भारतीय रिजर्व बैंक की एम जी एल-II खाता में रखते है, वो सिर्फ ग्राहकों के लिए होता है।
वैसे ही डीमैट खाता का उपयोग इक्यूटिस के लिए जमाकर्ता के द्वारा होता है। एन एस डी एल और सी डी एस एल उनको अपने भारतीय रिजर्व बैंक की एस जी एल-II खाता में रखते है, जो सिर्फ ग्राहकों के लिए होता है। लेन-देन के दो निम्नलिखित प्रकार है, जो भारतीय बाज़ार में लागू होते हैं:
बैंक और वैसा दूसरा थोक बाज़ार का भागीदार जिसका खाता पूरे थोक बाज़ार के आकार के लगभग 25% हो के
बीच प्रत्यक्ष लेन-देन : यहाँ बैंक और संस्था खुद के बीच प्रत्यक्षत: लेन-देन करती है चाहे टेलीफोन के द्वारा या भारतीय रिजर्व बैंक के एन डी एस सिस्टम के द्वारा।
बाजार में होने वाले लगभग 70-75% सौदे ब्रोकरों के द्वारा करवाए जाते है। वे ब्रोकर ही बैंक, प्राथमिक व्यापारी और संस्थाओं के साथ सौदा का लेन-देन कर सकते है, जिन्हें भारतीय रिजर्व बैंक के मान्य स्टॉक एक्सचेंज की सदस्यता प्राप्त हो।
बी एस ई और दूसरे एक्सचेंज सरकारी प्रतिभूतियों के लिए आर्डर आ स्क्रीन आधारित सौदा सुविधा उपलब्ध कराते हैं। ज्यादातर सौदों के लिए आज के दिन बी एस ई के सिस्टम पर सौदे बाजी ब्रोकरों के कार्यालयों और उनके इलक्ट्रोनिक प्रणाली से एक्सचेंज को मिलने वाली सूचनाओं द्वारा नियंत्रित है। ये सूचनाएं - निगोशियेटेड डील्स और क्रॉस डील्स से संबंधित होती हैं।
Super Exam Economics Financial Market / वित्तीय बाजार Question Bank
भारतीय पूंजी बाजार घोटालों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए भारत सरकार ने किसे नियामक शक्तियां सौंपी है?
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए- |
1. सेंसेक्स बंबई स्टॉक एक्सचेंज (BSE) में उपलब्ध 50 अधिकतम महत्वपूर्ण स्टॉकों पर आधारित होता है। |
2. सेंसेक्स के परिकलन के लिए सभी सेसेक्स स्टॉकों को आनुपातिक भारिता दी जाती है। |
3. न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज विश्व की सबसे पुरानी स्टॉक एक्सचेंज है। |
उपरोक्त कथनों में से कौन सा सही है? |
हाल ही में भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा अंतर-ऋणदाता करार पर हस्ताक्षर करने का क्या उद्देश्य था।
50 करोड़ या अधिक की दबावयुक्त परिसम्पत्तियों का जो सह संघ उधारी के अंतर्गत है, अधिक तेजी से समाधान करने का लक्ष्य रखना। done clear
बंबई शेयर बाजार के साथ पंजीकृत एक कंपनी समूह से संबंधित सभी कंपनियों के शेयरों के मूल्य से चढ़ाव। done clear
भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का कारण है |
1. विदेशी कोषों का अंतः प्रवाह और बाह्य प्रवाह |
2. विदेशी पूंजी बाजारों में उच्चावचन |
3. मौद्रिक नीति में परिवर्तन उपरोक्त कारणों में कौन-सा सही है? |
भारतीय रिजर्व बैंक में सूक्ष्म वित्त क्षेत्र के अध्ययन तथा उस पर सुझावों हेतु एक समिति का गठन किया गया। इसके अध्यक्ष थे-
वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए- |
1. यह नीति आयोग का एक अंग है। |
2. संघ का वित्त मंत्री इसका प्रमुख होता है। |
3. यह अर्थव्यवस्था के समष्टि सविवेक पर्यवेक्षण अनुवीक्षण करता है। |
उपर्युक्त कथनों में से कौन सही है? |
शाखा रहित क्षेत्र में व्यावसायिक संवाददाताओं की सेवाओं द्वारा लाभार्थियों को कौन-सी सुविधा प्राप्त होती है? |
1. यह लाभार्थियों को अपने गाँव में अपने सहाय और सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करने योग्य बनाती है। |
2. यह ग्रामीण क्षेत्र में लाभार्थियों को धनराशि जमा करने आहरण करने योग्य बनाती है। |
निम्न में से सही है |
भारत की निम्न वित्तीय संस्थाओं पर विचार करें |
1. भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (आईएफसीआई) |
2. भारतीय औद्योगिक प्रत्यय एवं निवेश निगम (आईसीआईसीआई) |
3. भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (आई डी बी आई) |
4. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) इन संस्थाओं की स्थापना का सही कालक्रम है |
5 मार्च, 2020 को सेबी ने एक मोबाइल एप सेबी स्कोर्स लॉन्च किया। इस एप के माध्यम से कौन अपनी शिकायत सेबी के पास आसानी से पहुँचा सकता है?
RBI ने हाल ही में शहरी सहकारी बैंकों के लिए पर्यवेक्षी ढांचे को युक्तिसंगत बनाया है, जिसके तहत किसी शहरी सहकारी बैंक की निवल गैर-निष्पादकं अस्तियाँ उसे निवल उधारों के कितने प्रतिशत से अधिक होने पर उसे पर्यवेक्षी कार्यवाही ढाँचे के अंतर्गत लाया जा सकता है?
हाल ही में RBI में पहली बार किस शहरी सहकारी बैंक को लघु वित्त बैंक में परिवर्तन हेतु लाइसेन्स जारी किया है?
किस एएमसी (एसेंटस मैनेजमेंट कंपनी) ने भारत का पहला कार्पोरेट बाण्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (भारत बाण्ड ETF) लांच किया है?
पूँजी बाजार (Capital market)
पूंजी बाजार क्या है, पूंजी बाजार से क्या आशय है, पूंजी बाजार का अर्थ, पूंजी बाजार के प्रकार आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं। पूँजी बाजार (Capital market) notes in Hindi for UPSC and PCS.
Table of Contents
पूँजी बाजार
पूंजी बाजार वह बाजार है जहां पर अंश पूँजी (Share) एवं प्रतिभूतियों (Securities) का लेन-देन किया जाता है। पूंजी बाजार का नियंत्रण सेबी (SEBI-Securities and Exchange Board Of India) करता है। SEBI की स्थापना 12 अप्रैल,1988 में हुई थी, इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है। सेबी की स्थापना के वर्ष (1988) इसकी प्रारंभिक पूंजी 7.5 करोड़ थी जो कि प्रवर्तक कंपनियों (IDBI, ICICI, IFCI) द्वारा प्रदान की गयी थी।
पूँजी बाजार एवं मुद्रा बाजार के बीच में प्रमुख भिन्नता यह है कि मुद्रा बाजार एक अल्पावधि की वित्तीय व्यवस्था वाला बाजार है जबकि पूंजी बाजार में मध्यम तथा दीर्घकाल के कोषों का आदान प्रदान किया जाता है।
भारतीय पूँजी बाजारों को दो भागों में बांटा जाता है –
1. संगठित पूँजी बाजार,
2. असंगठित पूंजी बाजार
1. संगठित पूँजी बाजार (Organized capital market)
संगठित पूँजी बाजार से आशय ऐसे बाजार से है जोकि किसी न किसी प्रकार से नियंत्रित होता है। इसमें पूंजी की मांग करने वाले प्रमुख पक्ष संयुक्त पूँजी वाली कंपनियों एवं सरकारी संस्थाएं होती हैं।
संगठित पूंजी बाजार को भी दो भागों में बांटा गया है –
I. गिल्ट एज्ड बाजार (Gilt Edged Market)
गिल्ट एज्ड बाजार (Gilt Edged Market) में भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से केवल सरकारी व अर्ध सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय किया जाता है। इस बाजार को प्रतिभूति बाजार संरचना सबसे सुरक्षित बाजार माना जाता है (प्रतिभूतियों का मूल्य स्थिर रहता है)। इस बाजार में जोखिम कम होता है जिस कारण निवेशकों की पूंजी यहां सुरक्षित रहती है।
II. औद्योगिक प्रतिभूति बाजार (Industrial Security Market)
औद्योगिक प्रतिभूति बाजार (Industrial Security Market) में औद्योगिक कंपनियों की इक्विटियों और ऋण-पत्रों को बेचा और खरीदा जाता है। औद्योगिक प्रतिभूति बाजार में नए अथवा पहले से स्थापित औद्योगिक उपक्रमों के शेयरों (अंश पूँजी) की बिक्री (क्रय-विक्रय) की जाती है। इस बाजार में निजी प्रतिभूतियों को कंपनियों द्वारा बेचा जाता है। इनका पंजीकरण भारतीय कंपनी एक्ट 2013 (Indian Company Act 2013) के अंतर्गत होता है।
कंपनियां मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं –
1. Public Limited
- कम से कम 7 अंशपूँजी धारक होते हैं।
- 50% से अधिक हिस्सेदारी सरकार की है।
2. Private Limited
- 2 से 50 अंशधारक होते हैं।
- 50% से अधिक हिस्सेदारी निजी कंपनी/कंपनियों की है।
औद्योगिक प्रतिभूति बाजार को आगे दो भागों में बांटा गया है –
i. प्राथमिक प्रतिभूति बाजार (Primary Security Market)
प्राथमिक प्रतिभूति बाजार (Primary Security Market) में कंपनी सीधे जनता के बीच अपने अंश पूँजी(Share) जारी करती है। ये नये Share होते है और इनके जारी होने से पूंजी बाजार में नया निवेश आता है। इस प्रक्रिया में कोई भी दलाल(Broker) नहीं होता, बल्कि कंपनी सीधे निवेशकों को अंश पूँजी बेचती है।
ii. द्वितीयक प्रतिभूति बाजार (Secondary Security Market)
द्वितीयक प्रतिभूति बाजार (Secondary Security Market) में कंपनियों की अंश पूंजी को ब्रोकर के माध्यम से निवेशकों के बीच खरीदे व बेचे जाते हैं। द्वितीयक बाजार में पुरानी प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री होती है। ये वे प्रतिभूति बाजार संरचना प्रतिभूतियां है जोकि प्राथमिक प्रतिभूति बाजार में पहले बिक चुकी होती हैं। अंश पूँजी (Share) की कीमत में उतार चढ़ाव चलता रहता है। इसी द्वितीयक बाजार को हम स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchange) कहते है।
2. असंगठित पूंजी बाजार (Unorganized capital market)
असंगठित पूंजी बाजार से आशय ऐसे बाजार से है जोकि किसी भी प्रकार से नियंत्रित नहीं होता है। ये बाजार पूर्णतः अनियंत्रित होता है। साहूकार, महाजन एवं अन्य अनियंत्रित वित्तीय सहायता समूह इसके उदाहरण हैं। आसान शब्दों में असंगठित पूंजी बाजार कार्यशील पूंजी के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं।
प्रतिभूति बाजार संरचना
BSE को अलग खंड के प्रतिभूति बाजार संरचना रूप में सोशल स्टॉक एक्सचेंज के लिए SEBI की मंजूरी मिली
7 अक्टूबर, 2022 को, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने BSE को मौजूदा स्टॉक एक्सचेंजों से एक अलग खंड के रूप में एक सामाजिक स्टॉक एक्सचेंज (SSE) शुरू करने के लिए अपनी सैद्धांतिक मंजूरी दी।
- SSE सामाजिक उद्यमों (SE) को धन जुटाने के लिए एक अतिरिक्त अवसर प्रदान करेगा।
- UK(यूनाइटेड किंगडम), कनाडा और ब्राजील सहित कई देशों में पहले से ही SSE हैं।
i. यह गैर-लाभकारी संगठनों (NPO) और लाभकारी SE को सूचीबद्ध करने में सक्षम बनाता है जो बाजार नियामक द्वारा अनुमोदित 16 सामाजिक गतिविधियों में लगे हुए हैं।
- इन गतिविधियों में भूख, गरीबी, कुपोषण और असमानता का उन्मूलन शामिल है; स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देना, शिक्षा, रोजगार और आजीविका का समर्थन करना; महिलाओं और LGBTQIA+ (लेस्बियन, गे, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर, क्वीर, पूछताछ, इंटरसेक्स, पैनसेक्सुअल, टू-स्पिरिट, अलैंगिक और सहयोगी) समुदायों का लैंगिक समानता सशक्तिकरण; और SE के इन्क्यूबेटरों का समर्थन।
ii. पात्र SE इक्विटी, जीरो-कूपन जीरो-प्रिंसिपल बॉन्ड, म्यूचुअल फंड, सोशल इम्पैक्ट फंड और डेवलपमेंट इम्पैक्ट बॉन्ड जारी करके फंड जुटा सकते हैं।
- कॉर्पोरेट फाउंडेशन, राजनीतिक या धार्मिक संगठन या गतिविधियाँ, पेशेवर या व्यापार संघ, बुनियादी ढांचा और आवास प्रतिभूति बाजार संरचना कंपनियां, किफायती आवास को छोड़कर, SE के रूप में पात्र नहीं हैं।
SSE के लिए फ्रेमवर्क से मुख्य बिंदु:
सितंबर 2022 में, SEBI ने SSE को धन जुटाने के लिए एक अतिरिक्त अवसर प्रदान करने के लिए SSE के लिए एक विस्तृत ढांचा अधिसूचित किया।
i.NPO के लिए न्यूनतम आवश्यकता: SEBI (पूंजी का मुद्दा और प्रकटीकरण आवश्यकताएं) विनियम, 2018 (ICDR विनियम) के विनियमन 292 F(1) के अनुसार SSE पर पंजीकरण के इच्छुक एक NPO निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करेगा:
- NPO को एक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत होना चाहिए और कम से प्रतिभूति बाजार संरचना कम 3 साल के लिए पंजीकृत होना चाहिए।
- इसने पिछले वित्तीय वर्ष में कम से कम 50 लाख रुपये सालाना खर्च किए हैं और पिछले वित्तीय वर्ष में कम से कम 10 लाख रुपये का वित्त पोषण प्राप्त करना चाहिए था।
ii. सूचीबद्ध NPO को तिमाही के अंत से 45 दिनों के भीतर SSE को धन के उपयोग का एक विवरण प्रस्तुत करना होगा, जैसा कि SEBI के नियमों के तहत अनिवार्य है।
iii. NPO को बजट के संदर्भ में शीर्ष पांच दाताओं या निवेशकों के विवरण, संचालन के पैमाने, कर्मचारी और स्वयंसेवी ताकत, शासन संरचना, वित्तीय विवरण, वर्ष के लिए कार्यक्रम-वार फंड उपयोग और ऑडिटर रिपोर्ट और ऑडिटर विवरण सहित वार्षिक प्रकटीकरण की आवश्यकता होती है।
iv. SE को वित्तीय वर्ष के अंत से 90 दिनों के प्रतिभूति बाजार संरचना भीतर गुणात्मक और मात्रात्मक पहलुओं को प्रदर्शित करते हुए वार्षिक प्रभाव रिपोर्ट (AIR) का खुलासा करने की भी आवश्यकता है।
SSE की पृष्ठभूमि:
यह केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्रालय द्वारा वित्त वर्ष 2019-20 के अपने बजट भाषण में प्रस्तावित किया गया था। उसके बाद, SEBI ने सितंबर, 2019 में इशात हुसैन (पूर्व निदेशक, टाटा संस) की अध्यक्षता में एक कार्य समूह (WG) का गठन किया, जिसने प्रतिभूति बाजार डोमेन के भीतर संभावित संरचनाओं और तंत्र की सिफारिश की है।
- 25 जुलाई, 2022 को, SEBI ICDR विनियम; SEBI (सूचीकरण दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएं) विनियम, 2015 (LODR विनियम); और SEBI (वैकल्पिक निवेश निधि) विनियम, 2012 (AIF विनियम) को SSE के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करने के लिए संशोधित किया गया था।
हाल के संबंधित समाचार:
i. SEBI प्रतिभूति बाजार संरचना ने साइबर सुरक्षा पर अपने 4 सदस्यों, उच्च स्तरीय पैनल का पुनर्गठन किया है जो साइबर हमलों से पूंजी बाजार की सुरक्षा के उपायों का सुझाव देता है। समिति अब छह सदस्यों तक विस्तारित हो गई है, जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIIPC) के महानिदेशक (DG) नवीन कुमार सिंह करेंगे।
ii. SEBI ने रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REIT), और इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT) को कुछ शर्तों के अधीन वाणिज्यिक पत्र (CP) जारी करने की अनुमति दी।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के बारे में:
अध्यक्ष – माधबी पुरी बुच
मुख्यालय – मुंबई, महाराष्ट्र
स्थापना – 1992सेबी (SEBI) क्या है? जानिए इसके उद्देश्य ,भूमिका,संरचना और कार्य
सेबी (SEBI) का फुल फार्म “ सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (Securities and Exchange Board of India)” है | हिंदी में इसे ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ कहा जाता है | सेबी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य शेयर मार्केट में निवेश करनें वाले लोगो को धोखाधड़ी तथा स्कैम आदि से सुरक्षित रखना है
भूमिका
भारतीय पूंजी बाजार दुनिया के सबसे बड़े पूंजी बाजारों में से एक है। इस पूंजी बाजार को नियंत्रित और निगरानी के लिए सरकार द्वारा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अर्थात (SEBI) का गठन किया गया । भारत के मुख्य स्टॉक एक्सचेंज , सेंसेक्स की वैश्विक बाजारों में एक प्रमुख भूमिका है।
सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (सेबी) को आधिकारिक रूप से 12 अप्रैल 1988 को भारत में फ़ाइनेंशियल मार्केट्स को विनियमित करने के लिए प्राधिकरण के रूप में नियुक्त किया गया था। इसे शुरू में एक नॉन-स्टटूटोरी निकाय के रूप में स्थापित किया गया था, अर्थात इसका किसी भी चीज़ पर कोई नियंत्रण नहीं था, लेकिन बाद में 1992 में, इसे स्टटूटोरी शक्तियों के साथ एक स्वायत्त निकाय घोषित किया गया । सेबी प्रतिभूति बाजार संरचना भारत के प्रतिभूति मार्किट को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संरचना
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड में एक अध्यक्ष और कई अन्य अंशकालिक सदस्य होते हैं। जिसमें अध्यक्ष का नामांकन सरकार द्वारा किया जाता है | अन्य में वित्त मंत्रालय के दो सदस्य, RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) के एक सदस्य और पांच अन्य सदस्य भी केंद्र द्वारा नामित हैं ।
सेबी का मुख्यालय मुंबई में स्थित है और क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में स्थित हैं |
सेबी की स्थापना का उद्देश्य
अनौपचारिक स्व-व्यापारी बैंक बैंकरों, अनौपचारिक निजी प्लेसमेंट, कीमतों में हेराफेरी, कंपनी के प्रावधानों का पालन न करने, स्टॉक एक्सचेंजों के नियमों का उल्लंघन, शेयरों की डिलीवरी में देरी, मूल्य की हेराफेरी आदि जैसे कई कुप्रचार होने लगे।
इन विकृतियों के कारण, लोगों ने शेयर बाजार में विश्वास खोना शुरू कर दिया। सरकार को काम को विनियमित करने और इन कुप्रथाओं को कम करने के लिए एक प्राधिकरण स्थापित करने की अचानक आवश्यकता महसूस हुई। परिणामस्वरूप, सरकार सेबी की स्थापना के साथ आई।
- सेबी यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें अपने निविश्कर्ताओ के आवश्यकताओं के लिए एक स्वस्थ और पारदर्शी वातावरण मिले।
- सेबी प्रतिभूति बाजार को सक्रिय रखने के साथ-साथ जनता के विश्वास वह भी पुनः स्थापित करता है जिससे वे निश्चिंत होकर अपना इन्वेस्टमेंट कर सके।
सेबी के कार्य:
सेबी के मुख्य रूप से तीन कार्य हैं-
सुरक्षात्मक कार्य – जैसा कि नाम से पता चलता है, ये कार्य सेबी द्वारा इन्वेस्टर्स और अन्य फ़ाइनेंशियल प्रतिभागियों के हितों की रक्षा के लिए किए जाते हैं।
इन कार्यों में शामिल हैं –
- कीमत में हेराफेरी की जाँच
- इनसाइडर ट्रेडिंग को रोकें
- निष्पक्ष प्रथाओं को बढ़ावा देना
- इन्वेस्टर्स में जागरूकता पैदा करें
- धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकना
विनियामक कार्य – इन कार्यों को मूल रूप से फ़ाइनेंशियल मार्किट में व्यवसाय के कामकाज पर एक जांच रखने के लिए किया जाता है।
इन कार्यों में शामिल हैं-
- फ़ाइनेंशियल मध्यस्थों और कॉर्पोरेट के उचित कामकाज के लिए गाइडलाइन्स और कोड ऑफ़ कंडक्ट डिज़ाइन करना।
- कंपनियों के अधिग्रहण का विनियमन
- एक्सचेंजों की पूछताछ और ऑडिट आयोजित करना
- दलालों, उप-दलालों, व्यापारी बैंकरों आदि का पंजीकरण।
- फीस की वसूली
- शक्ति का प्रदर्शन और नियंत्रण करना
- क्रेडिट रेटिंग एजेंसी को पंजीकृत और विनियमित करना
विकास कार्य – सेबी कुछ विकास कार्यों को भी करता है जिसमें निम्न्लिखित शामिल हैं लेकिन वे सीमित नहीं हैं-
- बिचौलियों को प्रशिक्षण देना।
- निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देना और दुर्भावनाओं को कम करना।
- रिसर्च कार्य को अंजाम देना ।
- स्व-विनियमन संगठनों को प्रोत्साहित करना।
- ब्रोकर के माध्यम से सीधे एएमसी से म्यूचुअल फंड खरीदें-बेचें।
सेबी प्रतिभूति बाजार संरचना से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तत्व
माधुरी पूरी बुच को 28 फरवरी 2022 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) का अध्यक्ष नामित किया गया है। माधुरी पुरी बुच सेबी की पहली महिला अध्यक्ष।
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